दस साल बाद आस्था उसी स्टेशन पर खड़ी थी जहाँ से वो कभी अपनी बहन के साथ घऱ को जाया करती थी। आस्था के साथ चार बच्चे थे और आँखों पर काला चश्मा। वो चश्में के आँखों पर होते हुए भी अपने गुज़रे कल को साफ़-साफ देख सकती थी। दस […]
दस साल बाद आस्था उसी स्टेशन पर खड़ी थी जहाँ से वो कभी अपनी बहन के साथ घऱ को जाया करती थी। आस्था के साथ चार बच्चे थे और आँखों पर काला चश्मा। वो चश्में के आँखों पर होते हुए भी अपने गुज़रे कल को साफ़-साफ देख सकती थी। दस […]