लांछन-अध्याय-1.4

वो दर्द, सदमे और डर से चीख़ें जा रहा था और तरह-तरह की गालियां दे रहा था। उसे कुछ समझ ना आ रहा था कि ये उस के साथ कैसे हो गया।

दर्द से उसका सिर फट रहा था और दुनिया घूमती दिख रही थी। वो जानता था कि उसका खून बह रहा है जिसे अगर नहीं रोका गया तो वो जाया हो जायेगा। आने वाली मौत का वो एहसास उस के लिये सबसे डरावना था।

अपने दर्द से होती जद्दोजहद में उसे पता भी ना लगा कि कब उसका लड़का वहाँ आया और उसने फ़र्श पर से टार्च उठा ली।

‘मेरा… पैर… हाय भगवान… मेरा पैर… साला कुत्ता… मेरा पैर…’ शराबी रोए जा रहा था।

‘तुझ जैसे नीच के लिये ये सबसे आसान सज़ा है। मुझे अफ़सोस हो रहा है कि तू इतनी आसान मौत मरेगा,’ लड़के ने ऐसा कह कर अपने बाप के मुंह पर थूका और वहाँ से बाहर जाने लगा।

‘साले कुत्ते… मेरी औलाद हो के तू ने… मुझे धोखा… माद##द…’ शराबी कमजोर पड़ती आवाज़ में चीख़ा जिस पर लड़के ने कोई ध्यान नहीं दिया।

शराबी ने देखा कि लड़का उसके कटे हुए पैर को डाँक आगे बढ़ा था। वो उस परिस्थिति में भी अपनी दुर्दशा का कारण जानना चाहता था। खून तेजी से बहता जा रहा था और बेहोशी धीरे-धीरे उसे मौत की ओर धकेल रही थी।

लड़के के वहाँ से जाते ही सुरंग फ़िर से अंधेरी हो गई। उस अंधेरे में घुला सन्नाटा उस जगह को और भी भयानक बना रहा था। उस सन्नाटे में गूँजती उसके दिल की धड़कन धकधक-धकधक करती हुई उसकी मौत के आने का संकेत दे रही थी… या शायद वो धड़कन कुछ ज्यादा ही जोर से धड़क रही थी।

पूरी ज़िंदगी में उस आदमी ने ऐसा वक़्त नहीं झेला था। उसका गला सूखा था, खून बहे जा रहा था, साँस बेवज़ह फूल रही थी और मौत हर ओर से आती दिख रही थी।

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