‘बता मेरा रुपया कहाँ है?’ एक शराबी ने अपने आठ साल के मरियल लड़के को थप्पड़ मार के पूछा। उम्र में तीस-पैंतीस साल का वो शराबी गंदा और भद्दा था। मोटा शरीर, तेल से सने बाल, भड़कीले रंग के कपड़े और मुँह से आती शराब की दमघोटू बदबू। शराबी के थप्पड़ से लड़के का मरियल शरीर हवा में ऊँचा उठ गया। देख के लगता था कि एक और थप्पड़ पड़ते ही उसकी आत्मा शरीर छोड़ देगी। आश्चर्य कि मार खाने के बाद भी वो मरियल लड़का अपने पैरों पर खड़ा था।
लड़के के गंदे कपड़े शराबी की छीना-झपटी में और फटते जा रहे थे। लड़के के सूखे गालों पर पड़ता हर थप्पड़ शराबी के हाथों को भी दर्द दे रहा था। लेकिन शराबी को लड़के की फ़िक्र नहीं थी। क्यों होती उसे लड़के की फ़िक्र? उस दिन उसे सिर्फ़ रुपये की फ़िक्र थी। रुपया जो उसकी जान बचाने वाला था।
उसी गंदी झोंपड़ी में तीस और बच्चे डरे-सहमे अपने भाई को पिटते हुए देख रहे थे। वो सारे बच्चे कपड़ों से मलीन, शरीरसे कुपोषित और रोगी थे। उन में से दो बच्चों की एक आँख नहीं थी, चार बच्चों के दोनों हाथों की उंगलियाँ नहीं थी, तीन
बच्चे पैरों से अपाहिज़ थे और बाकी बच्चे शरीर से कुपोषित थे। उन में से केवल दो लड़के ही थोड़े हट्टेकट्टे थे।
वो दिन उस मोटे-भद्दे शराबी की ज़िंदगी का सबसे बुरा दिन था। पहले वो जुऐ में पचास हज़ार रुपये हार गया, पुलिस वाले ने पाँच हज़ार रुपये ऐंठ लिए, नेता ने अपना हफ़्ता बढ़ा दिया और फ़िर उस के लड़के ने उसके रुपए चुरा लिए। उसे जुऐ में हारे रुपये चुकाने के लिये अगली सुबह तक का वक़्त मिला था। आधी रात हो गई थी और अब तक उसके हाथ में पाँच रुपए भी नहीं आए थे।