2013 में जब मुज्रिम ने जीवन के सबसे कड़वे अनुभव को जीते हुए लांछन को लिखा जो अंततः लेखक की पहली उपन्यास बनी। लांछन को लिखने में मुज्रिम को 2 साल लगे। इन दो सालों में लांछन कई बार बिगड़ी, कई बार बनी। जैसे एक मूरत जो तराशे जाने की राह में बार-बार नए आयाम लेती रही हो। लांछन का अंतिम स्वरुप 1,98,000 से ज्यादा शब्दों का है जिसे लेखक ने 670 पन्नों में समेटने का प्रयास किया है। Computer युग में पृष्ठों को कम और ज्यादा करना साधारण सा खेल लगता हो पर ये भी एक कठिन कार्य है।
वर्तमान में लांछन पब्लिशर की वेबसाइट से उपलब्ध है।
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लांछन पायल और पहर के मिलने और बिछड़ने की कहानी है, एक ऐसा वृत्तांत जो अपने आप में हृदयविदारक भी है और प्रेरणादायक भी। जो दो प्रेमी दशकों पहले बिछड़ गए, जिनके दर्द को दशकों पहले किसी ने नहीं सुना, जिनके प्रति समाज दशकों पहले संवेदनहीन हो गया, जिनके वापस मिलने के अब कोई आसार नहीं बचे हैं, उनके मिलन की कहानी है लांछन।
पहर मरने वाला है और पायल पहर को भूल चुकी है। दोनों के वापस मिलने के कोई आसार नहीं है पर फ़िर भी एक आस है। जहाँ एक ओर पहर अपनी याददाश्त को अपनी साँसों की तरह खो रहा है वहीं पायल ने अपनी यादों को अपनी ज़िंदगी की तरह भुला दिया है। ज़िंदगी जैसे डूब चुका वो आफ़ताब हो जो अमावस की रात में और याद आता है। काली स्याह ज़िंदगी की दास्तां बन चुकी यादें अब किसी भी तरह से दिल को सुकून न देने वाला अफ़साना हो चुकी हों। ऐसे में पायल और पहर की दास्तां सुनाने वाली एक ही कड़ी बची है, उन दोनों की डायरी।
दशकों बीत चुके हैं उस हादसे को और वक़्त भी उन दोनों पर सितम करते-करते आजिज आ गया है। उसे भी अब पायल और पहर का मिलन देखना है। वक़्त अब पायल और पहर की ज़िंदगी के हर पन्ने को पलट के देखना चाहता है, उस कारण का पर्दाफ़ाश करना चाहता है जिसने दो प्रेमियों को अलग कर दिया।
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समाज, व्यवस्था और संस्कृति के नाम पर होते ढ़ोग का पर्दाफ़ाश करती, प्रेमियों के ग़म और ख़ुशी को शब्दों में पिरोती, हृदय को चीर कर रख देने वाली दास्तां। दों प्रेमियों के जीवन को प्रेरणा बना कर प्यार की रीतियों और प्यार करने के नियमों को उजागर करता एक स्याह उपन्यासः-