…तो आप में भी छुपा है एक बलात्कारी

“कभी सोचा है कि बलात्कार का सबसे मुख्य प्रेरक क्या है? नहीं जानेंगे क्योंकि तब तकलीफ़ होगी कि हम में भी बलात्कारी होने के सब गुण हैं। मर्दों का तो ठीक महिलाओं में भी बलात्कारी होने के तमाम गुण मौजूद हैं। आपको आश्चर्य होता होगा कि महिला कैसे बलात्कार कर सकती है। यक़ीन मानिये, ये आप नहीं आपके अंदर का मर्द सोच रहा है। पता है सबसे बड़ा बलात्कार का प्रेरक क्या है? हिंसा। जी हाँ, हिंसा में व्यक्ति हमेशा कमजोर पर वार करता है। महिलाओं को दबाने वाला मर्द हिंसक होता है, उस पर हमला करने वाला मर्द हिंसक होता है, उस पर रौब झाड़ने वाला मर्द हिंसक होता है। उसी तरह महिला जो महिला को दबाती है, उस को प्रताड़ित करती है बलात्कार करने में सक्षम है। जरा गौर करें नीचे की फ़ोटो पर-

https://theprint.in/india/noida-teen-says-she-is-in-mental-trauma-after-video-with-haryanvi-tai-goes-viral/322732/

एक समय था जब महिलाओं में हिम्मत आ गई थी तो वो अपने ऊपर हुए जुर्म की दस्ता सुनाने पुलिस थाने तक आने लगी थीं। उस दौर में ही हरियाणा से तमाम ख़बरें आती थी कि किस तरह घर की बुजुर्ग महिलाएँ ही अपने घर में रह रही आज़ाद ख़्याल लड़कियों का घर के मर्दों से रेप करवाती हैं। फिर ऐसी ही ख़बरें उत्तर प्रदेश से भी आने लगीं। आज वो वक़्त कहीं दूर जा चुका है। जिस हरियाणा में गोपाल कांडा के साथ सरकार बनाने को उतावली सत्ता हो वहाँ पर महिला अपनी आपबीती न ही बताये तो ही ज़िंदा है। किसी हरियाणा के व्यक्ति से पता कीजियेगा, या उन पर्दे के पीछे की महिलाओं की दबी बोली से ही समझियेगा, वो सारी औरतें अन्य प्रदेशों से लाई गई हैं। किसी की माँ बरतन धोती होगी तो किसी के पिता की मृत्यु हो जाने से ग़रीबी ने उसे वहाँ पटक दिया। इस पर 2017 NCRB बताती है कि लगभग 76741 महिलाओं के अपहरण में 42326 बच्चियाँ हैं। आप को कोई गुमान है कि इसी रिपोर्ट में अपहरण के अपराध में पहले के मुकाबले 9% की वृद्धि दर्ज की गई है। तिस पर भी ये डाटा पूरा नहीं क्योंकि ज्यादातर मामले तो थानों में पहुँचते ही नहीं।

अगर इतना सब पढ़ने के बाद भी नहीं समझे तो आपके अंदर भी एक बलात्कारी मौजूद है। ये मर्द की सामने वाले को कमजोर समझने और बनाने की चाहत का अंत महिला के बलात्कार पर ख़त्म होता है। शराब तो सिर्फ़ एक हिस्सा है उस बलात्कार का पर आपके अंदर की हिंसा सबसे बड़ी दोषी हैं।

आश्चर्य होता है जब लोग बलात्कारी को सरे राह मारने की बात करते हैं। फिर वे लोग ही जा के पोर्न साइट पर हैदराबाद घटना का वीडियो ढूँढते हैं। कुछ पत्थरों से कुचल के मारने की बात करेंगे। अगर मुसलमान हैं तो शरीयत के मुताबिक़ सजा देने की बात करेंगे। आप समझ भी नहीं सकेंगे कि कितना मर चुके हैं हम अंदर तक की हमें हिंसा का इलाज और हिंसा दिखती है।

यक़ीनन रेप के मुलज़िमों को सजा मिलनी चाहिये। पर क्या आपको ये नहीं सोचना चाहिये कि रेप के आरोपियों को वो किया था जिसने उन्हें वहशियाना हरकत करने पर मजबूर कर दिया? आप निर्भया पर बनी डाक्यूमेंटरी देखेंगे तो आपको वहीं सोच आपके अंदर मिलेगी जो बलात्कारियों की थी।

मैं भारत सरकार के उस फ़ैसले को याद करता हूँ जिसमें निर्भया की डाक्यूमेंटरी को बैन किया, शायद फ़ैसला करने वाले उस मर्दों के ग्रुप को बलात्कारियों और अपने बीच इतनी समानता दिखी कि फ़िल्म बैन कर दी। ख़ुद आईना देखना किसी को पसंद नहीं।

आप सभी सोचें और तय करें कि आप के अंदर कितना कचरा भरा है।”

जिस दिन मैं ने ऊपर कोट किया पोस्ट लिख के ड्राफ़्ट में डाला वो दिन बड़ा ही अजीब था। मैं ने फ़ेसबुक न खोला था तो हर तरफ किसी महिला की फ़ोटो के साथ चार आदमियों की फ़ोटो वाले पोस्ट चल रहे थे। सब चिल्ला रहे थे कि महिला का बलात्कार हुआ है और बलात्कारियों को “इनको मार डालो” “ऐसे मार डालो” की माँग थी। मुझे लगा कि कर्नाटक और झारखण्ड चुनाव के लिये भाजपा के आईटी सेल की नई साज़िश है पर फिर पता लगा कि ये ख़बर पर लोगों की प्रतिक्रिया थी। मैं हैरान था कि ये कैसे हो गया कि लोगों ने रेप-विक्टिम की फ़ोटो लगा ली… ये तो माननीय न्यायालय के निर्देशानुसार नहीं है। शक था कि ख़बर झूठी है। मुझे डर था कि कहीं ग़ुस्से में पागल लोग कुछ कर न बैठे। अपनों को हैवान बनता देख मुझे ख़ुशी तो न होती।

पर ज्यों ही मैं फ़ेसबुक को पर फ़ीड पढ़ता गया मुझे पता चला कि मेरे एक सहपाठी शरीयत के मुताबिक़ पत्थरों से रेपिस्टों को मारने की माँग उठा रहे थे। ऐसी ही माँग अन्य लोग भी उठा रहे थे पर सिर्फ़ मुस्लिम रेपिस्ट के लिये। मैं वाक़ई हैरान था। कोई बिना कोर्ट के फ़ैसला दिये किसी व्यक्ति को रेपिस्ट कैसे कह सकता है।

मैं ने उस सहपाठी के पोस्ट पर कमेंट किया और कमेंट के बाद पोस्ट लिखने की सोची और ड्राफ़्ट में डाल दिया कि कुछ डेटा के साथ बात करूँगा। पर अगले ही दिन… चार लोगों की पुलिस द्वारा “मर्डर” की ख़बर आई। मैं समझ नहीं पा रहा था कि इस उन्माद में इस पोस्ट को झोंकूँ या नहीं। गालियाँ तो तब भी मिलनी थी उन्मादियों से।

पर जब पुलिस की भूमिका संदिग्ध साबित होने की ख़बरें आ रही है तब मुझे समझ आ रहा था कि हम खोखले हैं। हमें हर बात का समाधान हिंसा दिखती है। हम स्वयं भी तो करप्ट हैं। हिंसा करप्शन का ही एक स्वरूप है। राह चलते हमें कोई लड़की किसी लड़के के हाथ में हाथ डाले दिख जाती है तो हमारी खून खौल जाता है। हमारा जी करता है कि हम उससे पूछें की क्या वो बालिग़ है। अगर बालिग़ है तो भी हमारे सवाल ख़त्म नहीं होते। हम पूछते हैं कि क्या उसके माँ-बाप को पता है कि वो किसी लड़के के साथ बाँहों में बाँह डाले घूम रही है। पर उसके बाद भी सवाल ख़त्म नहीं होते, हम उससे पूछते है कि लड़के की जात क्या है, अगर फिर भी हम संतुष्ट नहीं होते तो पूछते हैं कि क्या ये प्रेम का प्रदर्शन खुले आम करना ज़रूरी है? अगर तिस पर भी हम उस लड़की के जवाब से संतुष्ट नहीं होते तो हमला कर देते हैं। उसे लव-जिहाद कह देते हैं, हिंसक हो जाते हैं। कभी सोचा की आप कितने करप्ट हैं? नहीं सोचते होंगे।

हैदराबाद के बाद झारखण्ड में भी बलात्कार हुआ। इस दफ़े कहीं से कोई आवाज़ न आई, क्योंकि लड़की आदिवासी समाज से थी। उसके कुछ ही घंटे बाद उन्नाव से एक महिला को जला कर मार डालने की ख़बर आई। हमारे फ़ेसबुक पर मौजूद भीड़ की एक ही माँग थीः- एंकाउंटर। कुछ तो ख़ुद बलात्कारियों को पीट पीट कर मार डालने की बात कह रहे थे, पर सिर्फ़ हैदराबाद की घटना में। क्योंकि उनमें एक मुसलमान तबके का आरोपी था? जी हाँ आरोपी था, अपराधी नहीं। अपराध तय नहीं हुआ था पर फेसबुकिया जनता को तो केवल हिंसा चाहिये थी।

ये समाज ऐसे लोगों से भरा पड़ा है जो ख़ुद को मनुष्य समझते हैं पर मनुष्य बनना नहीं चाहते। हैदराबाद की घटना के बाद सवाल होना चाहिये था कि हमारी सड़कें ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देने के लिये सुनसान रास्तों से क्यों जाती हैं? सवाल होता है कि हाईवे पेट्रोल पुलिस… जो रोड-रोड ट्रकों को सुनसान में रोक के अवैध वसूली को तत्पर रहती है वो महिला की सुरक्षा के लिये पास ही क्यों नहीं थी? सवाल होता कि हमारे पुलिस की ट्रेनिंग में क्या कमी है कि ये अपराध को रोकने के लिये जरा भी तत्पर नहीं? सवाल होता है कि कैसी शिक्षा दे रहे हैं हम अपने बच्चों को की वे इंसान को इंसान नहीं देखते?

पुलिस को आरोपियों की हत्या करने का आदेश कहीं से भी दिया गया हो पर इस घटना ने सवालों को दबाने के बजाय और सवाल खड़े कर दिये। लोग अब न्याय व्यवस्था में तेज़ी की माँग कर रहे हैं, पुलिस को ट्रेनिंग की माँग कर रहे हैं, पुलिस बल की रुकी भर्ती पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

इस सब में एक बात तो तय है कि अंधेरा अभी और घना होने को है। उजाला होगा पर अभी देर लगेगी। लोगों को अपने अंदर झाँक के देखना होगा और सोचना होगा कि अगर जनता को अपराधियों से इतनी ही नफ़रत है तो अपराधियों को इन्होंने संसद तक कैसे पहुँचा दिया। इस समय 53 सांसद ऐसे हैं जिन्होंने महिलाओं के ऊपर अपराध किया। हम को अपने अंदर का खोखलापन भरना होगा। मीडिया पर भी सवाल करना होगा जो हर घटना में हिंदू-मुस्लिम करने को उतारू है। अगर हैदराबाद की बेटी को न्याय की गुहार लगानी थी तो हमें झारखण्ड की आदिवासी लड़की को न्याय देने के लिये भी चीखना होगा, उन्नाव की बेटी के लिये भी रोना होगा।

जैसे ही आप हिंसक हो जाते हैं, आप मनुष्य नहीं रहते, फिर देश होने की बात तो भूल ही जाइये।

अनजान शख़्स। कमेंट में आप बता सकते हैं कि ये कौन हैं।

Disclaimer:- इस पोस्ट के अक्षर अक्षर पर लेखक का अधिकार है, जो शब्द से प्यार उनको शब्दों पे ऐतबार है। साइट बोलने के अधिकार का समर्थन करती है। आप आवाज नहीं दबा सकते। अगर किसी आँकड़े या वाक्य से ऐतराज हो तो कमेंट में लिख दें।

Leave a Reply