बंध गई बिल्ली के गले में घंटी- राम मंदिर पर आए आदेश का विश्लेषण

भोला इलाहाबादी की कलम से।


बचपन में पंचतंत्र की कहानी पढ़ते थे तो बहुत बार बिल्ली के गले में घंटी की कहानी को पढ़ा। मज़ा आता था सुन कर। अब वो कहानी भूली-भूली सी हो गई है। भविष्य में शायद ही किसी बच्चे को यह कहानी सुनने को मिले। न हम अब उतने प्रबुद्ध अभिभावक रहे हैं न ही हमारे पास उतना समय बचा है। दादा-दादी को पूजा करने से समय नहीं मिलता और बच्चों को मोबाइल से।

ख़ैर, राम मंदिर का आदेश आया और जब मुझे पता चला कि सुप्रीम कोर्ट ने देवता को भी क़ानूनी व्यक्ति घोषित कर दिया है तो मैं अवाक् रह गया। पर मैं जल्दी ही समझ गया कि इसे ही बिल्ली के गले में घंटी बाँधना कहते हैं।

आप को लग रहा होगा कि मैं फ़िज़ूल की बात कर रहा हूँ। पर इस पर मैं आपका ध्यान कुछ साल पहले आई एक पिक्चर पर खींचना चाहूँगा, नामः “ओ, माई गॉड!” कथित तौर पर निहायती बेशर्मी से आस्ट्रेलिया की फ़िल्म को चुरा कर तमाम ए से सी ग्रेड अंग्रेज़ी पिक्चरों के सीन कापी कर बनाई गई थी। पर उस फ़िल्म ने हिंदी भाषी जनता तक इस बात को पहुँचाया कि भगवान की भी ज़िम्मेदारी बनती है। अफ़सोस की उग्रवादी हिंदुओं की “भावनाओं” का सम्मान करने के लिये अंत में भगवान को ही फ़िल्म का सूत्रधार दिखा दिया, आस्ट्रेलिया की फ़िल्म में ये मूर्खता नहीं थी, पर अपनी फ़िल्म ख़ूब चली। पहली बार किसी ने फ़िल्म में ही सही पर भगवान पर केस तो ठोका था। यकीनन फ़िल्म काल्पनिक थी पर लोगों को फ़्री-चैनल पर ख़ूब दिखाई गई। आज उस फ़िल्म को असल ज़िंदगी में उतारने का रास्ता भी बनता देख लिया है।

अगर आपने रामलला विराजमान केस की जीत पर ख़ुशी मना ली तो बेहतर। आपको मुबारक़बाद। देश में मंदी है, भूखा मारने वालों की गैंग में हम सबसे ऊपर हैं, पीएमसी से यूपीपीएफ घोटाला किसी मदहोश हाथी की तरह लोगों के भविष्य को कुचल रहा है पर हमें मंदिर पहले चाहिये। नाना पाटेकर के शब्दों मेंः- अच्छा है।

तो आपने अगर एक पल के लिये भी समाचारों को देखा तो आपको अदालत के फ़ैसले की ख़ास बातें याद होंगी। मैं केस के अंदर न जा कर आपको फ़ैसले के उस निर्णय की ओर ले जाना चाहूँगा जिसमें अदालत ने देवता को भी क़ानूनी व्यक्ति माना। ये अपने आप में एक अभूतपूर्व निर्णय था। बिल्ली के गले में घंटी बंध चुकी है।

जी हाँ। हमारे देश में जो भक्ति रस में मदहोश नहीं हैं वो सवाल करते हैं। वो सवाल करते हैं कि अगर किसी व्यक्ति को सुविधा मिली है तो वो काम क्यों नहीं करता। अब इस फ़ैसले के बाद आप यही सवाल देवता के एजेंटों से कर पाने के अधिकारी होंगे? ये बात का फ़ैसला वादविवाद व अदालत में तय होगा।

आप ही सोचिये। अगर रामलला एक क़ानूनी व्यक्ति है तो उनकी ज़िम्मेदारी क्या होगी उनके अनुयायियों के प्रति? अगर रामलला एक क़ानूनी व्यक्ति हैं तो क्या अयोध्या पर आने वाली तमाम प्राकृतिक व अप्राकृतिक आपदाओं के लिये अब उनके ऊपर मुक़दमा नहीं होगा? और बच्चों के भूख से मरने वाले तमाम लोगों की ज़िम्मेदारी क्या रामलला की नहीं? हिंदू महासभा तो कहती है कि राम सबके देवता हैं। यक़ीनन। तो ये देवता साहब ज़िम्मेदारी भी तो लेंगे या नहीं?

और ये घंटी सिर्फ़ रामलला के मंदिर पर नहीं लगेगी जिसको हर आने जाने वाला पीड़ित बजाएगा। रामलला के परिसर में अयोध्या के तमाम भूखे और ग़रीबों को सोने का अधिकार होना चाहिये, क्योंकि रामलला ग़रीबों के प्यारे थे। क्या उनके ही घर में ग़रीबों को सोने और रहने का अधिकार होगा, या उनको भी दरवाज़े पर बैठा कर भीख माँगने को मजबूर किया जाएगा? और फिर ये घंटी शनि महाराज के मंदिर पर भी तो लगेगी जहाँ आस्था के नाम पर रोज़ हज़ारों लीटर तिल के तेल का व्यापार होता है। ये घंटी शिर्दी वाले साईं बाबा जी के यहाँ भी लगेगी। ये घंटी पीर बाबा की तमाम दरगाहों पर भी लगेगी… नहीं उनके यहाँ नहीं लगेगी। वो देवता नहीं हैं, हिंदू धर्मगुरू न जाने कितने दफ़ा कह चुके हैं। देवता होने के लिये हिंदू होना कम्पल्सरी है, हैं न? तमाम हिंदू धर्मगुरू तो शिर्दी के साईं बाबा को भी देवता नहीं मान रहे, तो वो भी शायद जनता के वाद से बचेंगे।

मैं शुक्रगुज़ार हूँ कोर्ट का। कहना ही पड़ेगा कि भारत का सुप्रीम कोर्ट महान है। पर ये फ़ैसला उनके लोगों की ज़िम्मेदारी तय करने में सहायक होगा जो आज फ़ैसले के लेकर नाच गा रहे हैं? ये तो वक़्त ही बताएगा।

पर इस कहानी में बिल्ली कौन है?

तमाम धर्मगुरू! जी हाँ, जिन लोगों ने भगवान के नाम पर आपका पैसा खाया वो हैं वो बिल्ली जिनके गले में घंटी बंधी है। ये ही हैं भगवान के रीजनल मैनेजर (Regional Manager)। ये हैं ठेकेदार जिन्होंने आपको ठगा? तब तो केस भी इन्हीं के ऊपर होगा। पता है ये सब मुझे कहाँ से समझ आया? जी हाँ, उसी पिक्चर से जिसको तमाम विदेशी फ़िल्मों से चुरा-चुरा के बनाया गया।

मेरे हिसाब से अब हर दुख के लिये अपोसिट साइड में एक पार्टी रामलला भी होंगे। रामलला पर टैक्स भी लगेगा, जब हम और आप टैक्स देते हैं तो ये क्यों बचेंगे? अब रामलला देश में कहीं भी किसी भी राम मंदिर में भगदड़ मचने पर मुआवज़ा भी देंगे? वो रामलला हैं, क़ानूनी व्यक्ति हैं। रामलला अनाथ गरीब बच्चों को फ़्री में पढ़ायेंगे, ठीक वैसे ही जैसे कम्पनी सीएसआर फंड से पढ़ाती है? और सिर्फ़ इस देश के लोगों की ज़िम्मेदारी रामलला पर नहीं होगी क्योंकि हिंदू महासभा के अनुसार तो रामलला पूरे विश्व के भगवान है। रामलला अब एक क़ानूनी व्यक्ति हैं। सत्यमेव जयते।


Disclaimer- ये लेख फ्री स्पीच है। वेबसाइट इस की जिम्मेदारी तो लेगी न, पगलयाओ नहीं। और पोस्ट पर वाहियाद कमेंट करने की बात तो भूल ही जाओ। यहाँ से मॉडरेशन का आप्शन है मेरे पास। पर, फिर भी, अगर इस लेख से दुःख हुआ हो तो रामलला पर केस कर दो, वो अब एक कानूनी व्यक्ति हैं, पता नहीं? गुहार लगाओ। शायद तुम्हें दिलासा देने ही वो अब इस धरती पर आ जाएँ। बिहार में गरीबों के बच्चों को बचाने के लिये तो उनके पास टाइम था नहीं। वैसे तब वो कानूनी व्यक्ति भी तो नहीं थे। कैसे आते?

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