अभी दो दिन ही तो हुए थे…

मन रही थी ख़ुशी उस रोज़,
हैरां था मैं कि अभी दो दिन ही हुए थे।
भूला नहीं था शाम को उस दिन,
चीख़ों से गूंजा था गाँव,
भूखे पेट भी थिरकते थे जो कल,
अब न थिरकेंगे वो पाँव।
कल गूँजी थी जो किलकारी,

अब न कभी वो गूँजेगी,
जिन हाथों में बंद थी क़िस्मत,
उनकी कमी न पूजेगी।
बाप वहीं था कोने में,
माँ भी व्यस्त थी रोने में,
नेता जी चि.. चि… करते
आते बेड को कोने में।
पूछ रहे थे कैसे हुआ ये…

किसने मारा है इनको,
शर्म भी न आती थी जबकि
सब कुछ पता था इनको।
चले गए सब ग़म दिखा कर
छोड़ गए वो लाशों को।
छोटे नन्हें हाथों को,
वो देके मौत के पाशों में।
धीरे-धीरे रूंदन रूक गया,
कान में पड़ी थी तब आवाज़।
पता लगा कि जीते हैं हम,
क्रिकेट का मानता है उल्लास।
दंग था मैं कि क्या कर जाऊँ,
रूंदन में ये घुला उल्लास,
सर्प-सा लोटे दर्द हृदय में
हटा सकूँ न दुख की फाँस।
अब न किसी को मतलब है,
सब कहते देश से प्यार हमें।
कहाँ मर गये साले कुत्ते, जो,
जो कहते हिंद पर नाज हमें।
ये कैसा है हिंद मेरा जो
मरता है बचपन में रोज़।
दुख न होता है इसको क्योंकि
क्रिकेट में डूबें हैं अब लोग।
मैं जानता हूँ…
ये बच्चे न थे जो मर चुके थे कल
मर तो गया था ये देश,
कुपोषत लाखों घरों में रहता
इसका न होता कोई भेष।
न कोई चर्चा, न पर्चा,
बस अब होगा खर्चा।
खर्चा रोड पर,
खर्चा मंदिर पर,
खर्चा पार्टी के आफिस पर,
बच गया जब अब टाईम कभी भी,
तब चर्चा गाय के गोबर पर।
मरता है तो मरता जाए
बच्चे ही तो है इस देश के ये।
वैसे भी थे ग़रीब़ के बच्चे,
फ़िकर किसे है… समय किसे?
मुझको बस बतला दो इतना,
मैं रूंदन करूँ या नाच करूँ,
बच्चों के साथ मरा मैं,
अब क्यों मैं तुम्हारी फ़िकर करूँ?
किसका मैं जैकारा करके
मना लूँ मैं अब इस दिल को।
ख़त्म हुए है एक सौ बच्चे,
दोष मैं दूँ मैं अब किसको?
अब न कोई दुख है मुझको,
बस देख रहा उल्लास को मैं,
सोचता हूँ कि देश कहाँ है,
खोजूँ किसमें देश को मैं।
अब दुख नहीं है मुझको…
मन रही है ख़ुशी सौ बच्चों की मौत पे,
हैरां हूँ मैं कि अभी दो दिन ही हुए थे।
मैं कोई कवि नहीं, बस ग़ुस्सा हूँ कि अब कोई ग़ुस्सा नहीं होता। हाँ ये बिहार में मरे बच्चों के प्रति मेरी करूणा है। मैं तो ग़ुस्सा हूँ कि ये करुणा मेरा पास है ही क्यों? सब क्रिकेट में जीत के लिये पटाखे फोड़ रहे थे, मुझे भी फोड़ना चाहिये थे। मुझे तो उस दिन पता भी नहीं चला कि बच्चे मर हैं। सब पटाखों के शोर में दब गया। अब किसी को फ़र्क़ भी नहीं पड़ता। बस क्रिकेट का उल्लास है और पार्टी की जीत का ज़श्न। मुबारक़ हो, आप जीत गए। अब किसे फ़िकर है… बस पाकिस्तान और भारत के खेल में भारत जीत जाए। मुबारक़ हो आप जीत गए।
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