ये कहाँ आ गये हम?

आज जब मैं Facebook को खोल के देखा तो मुझे पता चला कि हम कितने आगे बढ़ गये हैं। चुनाव भले ख़त्म हो चुके हों पर भगवा आई0टी0 सेल नहीं। अब वैसे आई0टी0 सेल की ज़रूरत ही नहीं है। अब उनका यह काम देश के वह युवक युवतियाँ करेंगे जिनमें यह ज़हर इस क़दर समा गया है कि ईश्वर भी इसे नहीं निकाल सकते।

गाँधी था किसी जमाने में जिसके साहस से नफ़रत फ़ैलाने वाले डरते थे… पर गाँधी अमर नहीं था। एक न एक दिन उसे भी मरना था, अपनी मौत मरता या गोली से, मौत तो आनी ही थी। पर गाँधी ख़त्म तब भी नहीं हुआ था। 75 सालों तक गाँधी मज़्बूरी का नाम बताया गया, देश बाँटने वाला क़रार दिया गया—जबकि अब ये सबको पता था कि सावरकर था जिसने दो देश होने की बात कही थी। गाँधी सिर्फ़ मुस्लमानों का हिमायती क़रार दिया क्योंकि अब दलित, आदिवासी और जनजाति को अपना दुश्मन क़रार देने में दिक्कत आ रही थी।

पर अब पूरा मामला ही बदल गया है। पिछड़े लागों को सवर्ण अब भी अपना दुश्मन मानता है क्योंकि उसे भ्रम है कि सारी सुख-सुविधा होने के बाद भी उसके बच्चों को सरकारी नौकरी नहीं मिल पा रही―सवर्ण ये नहीं देख पाता कि कैसे भर्ती माफ़िया चंद लाख रुपये में नौकरी लगवा देते हैं… चंद लाख रुपये जो ग़रीब पिछड़ी जाति के पास नहीं होते। पर फ़िर भी फ़ेसबुक पर लड़के कहते हैं कि मुसलमान के घर से बेहतर है दलित का घर। ये भावना कब घर कर गई कौन जान सकता है?

पर शायद हम ये समझ सकते हैं। टी0वी0 न्यूज़ पर अब जब भी दलित के मारने पीटने की घटना सामने आती है तो फ़ेसबुक पर मुसलमान से नफ़रत के प्रवचन आ जाते हैं। शायद मुसलमान से नफ़रत इन लोगों के पिछड़ों से नफ़रत पर परदा है। अब हम ये नहीं देख सकते के कैसे पिछड़ों का हक मारा जा रहा है, कैसे एक जनजाति समूह की डाक्टर ने जातिवादी प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली… क्योंकि अब हमारा पूरा मक़सद मुसलमानों से नफ़रत और रिज़र्वेशन के ख़िलाफ़ जंग है।

बड़ा नाज़ होता है इन भगवाधारी भाइयों और “साध्वीयों” को अपने पुरातन चौपाइयों पे। शायद इसी लिये इनके पास नफ़रत के बीज बोने के अलावा कुछ नहीं। जब आप अपनी सोच की अविरलता को रोक दोगे तो मानसिकता संड़ाध तो मारेगी ही। चलो मैं तुम सबके नफ़रत के विरोध में कुछ सोच विचार करने के लिये देता हूँ। अग़र जी करे सार्थक बहस करने की तो आ जाना। तुम मेरे लिये मेरे भाई ही रहोगे जो पगला गया है। लो सुन लोः-

नफ़रत_के_ये_अनोखे_बीज#


जाने कब ये अनोखा चमत्कार हो गया, 🙂

मेरे दर पे आया “साधू” भी ख़ूँख़ार हो गया।😟

बता गया कि इस बार मुसलमान मिटाने हैं हमें,😡

और

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देखते-देखते FB पे दलित इंसान… पर मुसलमान नागवार हो गया। 😧

अब नफ़रत के ये नये बीज बो के क्या फ़सल काटेंगे हम? 😞

लाखों टुकड़ों में बँटे इस मुल्क को और कितना बाँटेंगे हम? 😢


 

शिवशंकर गुप्ता की क़लम/iPhone से।

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