वो काली रात… (Last Episode)

वो काली रात-1, वो काली रात-2, वो काली रात-3, वो काली रात-4


मैं यक़ीन नहीं कर पा रहा था उस सीसे पर। उस सीसे में पुतला ही था। कपड़े का बना पुतला ही था सीसे में।

“ये कैसे हो सकता है?”—मैं ने पूछा। मुझे अब भी लग रहा था कि वो सब एक दुःस्वप्न था। पर फिर मेरा ध्यान सीसे में गया। पुतले का कपड़े से बना मुँह हिला था।

“नहीं!”—मैं चीख़ पड़ा। मैं पागल हुआ जा रहा था। आख़िर ये सब मेरे साथ हो क्या रहा था।

“हाँ… ये सच है। तुम एक इंसान नहीं… पर तुम मुर्दा भी नहीं।”—सिया बोली।

“तो क्या हूँ मैं?”—मैं ने पूछा।

“मैं नहीं जानती। तुम एक तूफ़ानी रात में ज़ख़्मी हालत में मेरे दरवाज़े पर आए थे। मैं नहीं जानती कि तुम क्या हो? मैं नहीं जानती कि तुम क्या थे। उस ज़ख़्मी हालत में मैं तुम्हें इस कमरे में ले आई। ये मेरे खेत के लिये बनाया हुआ पुतला था। तब मैं अपने पति के साथ रहती थी। मैं तुम्हें यहाँ छोड़कर ऐम्बुलेंस बुलाने के लिये फ़ोन तक गई थी। इस बीच में क्या हुआ मैं नहीं जानती पर तुम मर चुके थे। मैं उस दिन इतना डर गई थी कि मैं तुम्हें बता भी नहीं सकती। मैं भागी-भागी अपनी माँ को लेने गई पर तब तक मेरी बेटी तुम तक पहुँच चुकी थी और तुमसे कहानी सुन रही थी।

“मेरा पति बहुत बुरा आदमी था। वो मुझे और मेरी बेटी को मारता था। जब मैं मिष्ठी को ढूँढती यहाँ आई तो मुझे यहाँ मेरे पति के कपड़े मिले और वो तुम्हारी लाश सहित यहाँ से ग़ायब हो गया था। मुझे लगा कि वो तुम्हारे हाथों मारा गया पर तुम तो बेजान थे। मैं कुछ नहीं जानती पर मैं उस हरामज़ादे को ग़ायब करने के लिये तुम्हारी शुक्रगुज़ार थी और मिष्ठी भी तुम्हें पसंद करती थी। उस दिन से दो साल हो गए। मुझे लगा था सब ऐसा ही चलता रहेगा पर मेरी माँ को कई चोंगे वाले हैवान ले के आए। वो सब मेरी मिष्ठी को ले गए और उन्होंने ने मुझे से कहा कि मैं तुम्हें छोड़ दूँ।

“मैं नहीं जानती कि वो मुझसे क्या चाहते हैं। मुझे मेरी मिष्ठी वापस चाहिये।”

इस सब को सुनते हुए मैं वहाँ याद करने की कोशिश कर रहा था कि मैं क्या था अपनी पुरानी ज़िंदगी में। आज मेरे पास कई सवाल थे और जवाब एक भी नहीं। कोई कहानी नहीं थी मेरे पास जिससे मैं अपनी ज़िंदगी को जोड़ के देख पाता।

मैं अब जान गया था कि मैं पुतला न था। मैं ने अपने हाथ को हिला कर देखने की कोशिश की। मैं नहीं जानता था कि मेरी कोशिश कामयाब थी या नहीं पर सिया मुझे आश्चर्य से देख रही थी। वो डर के मारे एक कोने की ओर हो रही थी।

मैं ने अपनी गरदन को उठाने की कोशिश की, धीरे-धीरे जाने कैसे पर मैं अपने पैरों पर खड़ा हो गया। सीसे में खुद को खड़ा देख कर मुझे यक़ीन नहीं हो रहा था। मैं खेत में खड़ा रहने वाला पुतला हुआ करता था जो आज चल फिर रहा था।

सिया बुरी तरह से डरी हुई थी। मैं नहीं जानता था कि ये डर उसका मुझ से था या उस पुतले से जिसे उसने कौओं को डराने के लिये इतना डरावना बनाया था।

“मिष्ठी जहाँ कहीं भी होगी उसे मैं वापस लाऊँगा।”—मैं ने बोला। अब भी मेरे मन में कई सवाल थे। मैं अपने आप के बारे में भी नहीं जानता था पर मुझे विश्वास था कि मुझे सब याद आ जाएगा और जिस दिन मुझे सब याद आएगा वो दिन उन हैवानों का आख़िरी दिन होगा जिन्होंने मेरी मिष्ठी को मुझ से दूर किया।


आप सोच रहे होंगे कि ये कैसा कहानी का अंत है। सवाल जायज़ है। कहानी और है। वो काली रात… का अगला सीज़न फ़रवरी 20 से शुरु हो रहा है। दोस्तों यह कहानी पाँच Episode तक सीमित रहने वाली थी पर ऐसा हो नहीं सकता। मेरे ख़्याल से आपको इस कहानी के बारे में और जानना ज़रूरी है। मैं समझता हूँ कि इस दौड़ भाग भरी ज़िंदगी में आपके लिये किसी भी चीज़ का इंतज़ार करना मुश्किल होता है, पर हमारा साथ एक दो दिन का कहाँ। कहानियाँ, लेख, उपन्यास, कविताएँ… बन्नो की डायरी आपसे रूबरू होती रहेगी।

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