वो काली रात… (Episode 1); वो काली रात (Episode 2); वो काली रात… (Episode 3)
उस बुढ़िया के चेहरे के हाव भाव ज्वार भाटों की तरह पल-पल बदल रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वो तय न कर पा रही हो कि उसे क्या करना है। मैं जानता था कि मेरा अंत निकट है पर मैं उसकी इस दुविधा का कारण जानना चाहता था।
उस बुढ़िया ने चाक़ू नीचे कर लिया और बोली—“मैं ये नहीं करना चाहती पर…”
पर वो पूरा नहीं बोल सकी। अचानक उसके गले से ख़ून का एक फुव्वारा फूट निकला।
“स… सीसा…”—वो बुढ़िया ने अपनी मरती हुई आवाज़ में मुझे से कहा। मैं समझ नहीं पा रहा था कि ये सब क्या हो रहा था। उस बुढ़िया के ख़ून से मेरा बेजान शरीर तर-ब-तर हो रहा था। फ़िर जब वो बुढ़िया ज़मीन पर गिरी तो मुझे कमरे के दरवाज़े पर सिया दिखाई दी।
सिया की हालत ठीक नहीं थी। उसके सिर से ख़ून बह रहा था। वो अंदर आई और मेरे पास आकर बैठ गई।
“मिष्ठी कहाँ है?” मैं ने मन-ही-मन खुद से पूछा।
“वो मिष्ठी को ले गए,” सिया बोली।
मेरा दिमाग़ सुन्न रह गया था। सिया भी मुझे सुन सकती थी। पर यह कैसे हो सकता था। मैं एक पुतला था। मिष्ठी मुझ से खुद-ब-खुद बातें करती थी। इतने दिनों में उस ने मेरी किसी भी बात का जवाब नहीं दिया था। मैं वहाँ दो साल से था पर मुझे कभी अंदाज़ा भी नहीं हुआ कि वो मुझे से सुन सकती थी।
“तुम मुझे कैसे सुन सकती हो?”—मैं ने पूछा।
“क्योंकि मैं ने ही तुम्हें बनाया है। वो मिष्ठी को ले गए क्योंकि उन्हें तुम चाहिये। इतने दिनों से मैं तुम्हें ज़िंदा रखे थी क्योंकि मैं एक बच्ची से उसका बाप नहीं छीनना चाहती थी। मुझे क्या पता था कि मेरी ये छोटी सी भूल मेरी बच्ची पर भारी पड़ेगी।”—सिया ने रोते हुए कहा। उसके सिर से ख़ून बहना अब भी बंद न हुआ था।
“मैं एक पुतला हूँ। आख़िर ये सब क्या हो रहा है? मैं क्या हूँ?”—मैं ने पूछा। मैं अब जानना चाहता था कि मेरी पहचान क्या थी। दो साल से मैं इस सोच में था कि मैं एक पुतला था, अब मुझे मेरा ये भ्रम बहुत तेज़ी से निगल रहा था।
“तुम एक पुतले हो पर तुम जानना नहीं चाहोगे कि तुम कौन हो,”—सिया ने मुझे कहा।
अब मेरे पास लाखों सवाल थे जिनका कोई जवाब शायद नामुमकिन था। मैं पिछले दो सालों को याद कर रहा था। मुझे आज भी वो दिन याद था जब मैं ने पहली बार सिया को देखा था। वो मेरी आँखों को सीं कर चली गई थी। पर फिर मेरे पास आई मिष्ठी जिसने मुझ से कहानी सुनाने के लिये कहा। मैं नहीं जानता था कि मेरा उस लड़की के साथ क्या रिश्ता था पर वो मुझे डैडी कह कर बुलाती थी। पिछले दो सालों से रोज़ का नियम सा था उसे डरावनी कहानी सुनाना। मुझे भी नहीं पता था कि वो कहानियाँ कहाँ से आती थी। भूत, पिशाच, चुड़ैल, चांडाल, जिन्न… मैं सभी की कहानियों को सुनाता था।
पर अब मुझे शक हो रहा था कि मैं पुतला नहीं था।
“सीसा। मुझे सीसे में खुद को देखना है।”—मैं ने सिया से कहा।
“सीसा? मेरी बेटी की जान ख़तरे में है और तुम्हें सीसा चाहिये? तुम्हारे बारे में मैं ने सच ही सोचा था। मुझे तुम्हें नहीं बचाना चाहिये था।”—सिया ग़ुस्से में बोली।
“मुझे सीसा देखना है… अभी।”—मैं चीख़ कर बोला।
इस पर सिया उस अंधेरे कमरे से बाहर गई और एक बड़ा-सा सीसा साथ में ले आई। मैं अंदर ही अंदर जान गया था कि मैं एक पुतला नहीं हूँ।
“दिखाओ मुझे।”—मैं ने कहा।
सिया ने इस पर हिचकते हुए सीसे को मेरे सामने किया। उस सीसे में वो था जिस को देख कर मेरे होश फ़ख्ता हो गए।