झंडू हमारा बड़ा ही शानदार आदमी था। पिछवाड़े पर एक लाख की गाड़ी, आँखों पे काला चश्मा, हाथ में आई-फून और पाकेट में तीन-तीन क्रेडिट कार्ड। झंडू को लोग प्यार (और जलन के मारे) सेठ कहते थे। सब मस्त था उसके जीवन में। घऱ में दो प्यार करने वाले माँ-बाप। अकेली औलाद था तो कोई भी नहीं था कंपटीशन में। पढ़ा-लिखा गबरू लौंड़ा।

पर झंडू को न मालूम था कि मोदी उसके मस्त जीवन की लगाने वाले थे।
सो हुआ यों कि मोदी जी के आने के बाद राजनीति में योजनाओं का ऐसा अकाल पड़ा कि पूछो ही मत। बेचारे हमारे प्यारे मोदी जी। सूचना का अधिकार कांग्रेस ले आई थी, शिक्षा का अधिकार कांग्रेस का काम था, संचार क्रांति कांग्रेस की देन थी, बस कुछ नहीं हुआ था तो रोड और पुल निर्माण। सो फिर क्या था? मोदी बब्बा लग गए काम पे। नोट बंद कराया, बैंक अकाउंट खुलाया, सौदागरी के जादूगर बन के दुनिया के लोगों को बताया कि सौदा कैसे करते हैं—वैसे मोदी दादा ने आख़िरी तीन सौदे क्या किये थे?
पर मोदी जी ने काम किया। हमारा झंडू भी मानता था कि मोदी जी ने काम किया। लोगों को हेल्थ केयर दिया, मन की बात बोली, सर्जिकल स्ट्राइक कराया… और उसके बाद झंडू का भी डब्बा गोल हो गया था। पर ये तो बात थी कि मोदी ने काम किया था। मस्त काम किया था। सूचना के अधिकार में सेंघ लगाने का काम, तीन तलाक़ पर जेल भिजवाने का काम, काम पर काम। मोदी सोते कम थे और जागते ज़्यादा। देश से प्यार जो था, तभी तो ज़्यादातर देश से बाहर रहते थे—क्योंकि दूरी प्यार को बढ़ाती है।
एक ऐसा ही प्यार था हमारे झंडू का। सेठ की लड़की से प्यार करता था। सेठ की सिर्फ़ एक डिमांड, लगता ग़रीब नहीं होना चाहिये। अमीर की लड़की सिर्फ़ अमीर को ब्याहेगी—कहता था सेठ।
तो भाई सब सही था।
पर फिर आया इलेक्शन सीज़न। मोदी बब्बा ने इतना काम कर लिया था कि अब कुछ बचा ही नहीं था। हमारे प्यार मोदी जी मानते थे कि सारे सरकारी स्कूलों का जीर्णोधार हो गया है, करप्शन तो जड़ से गया—अगर सी०बी०आई० की बात न हो, सरकारी अस्पताल तो ऐसे चमक गए है कि प्राइवेट भी शर्म से मर जाए—ख़ास तौर पर जब आँकड़ा अस्पताल में भर्ती मरीज़ों की बात हो, सड़क पर से भिखारियों का सफ़ाया हो गया है—मंदिर जो नए बन रहे हैं, और किसान अपनी फसल का मस्त पैसा पा रहा है। तो फिर बचा क्या?
फिर प्यारे मोदी जी का ध्यान गया उस ओर जहाँ अभी तक कुछ नहीं हुआ था। पोंगें पंडितों का भला। सो एक तथाकथित पोंगा पंडित बनाया सी०एम० और लग गए राम के जुमले को हवा देने में। लगा दिया सभी मंत्रियों को टी०वी० पर शक्ल दिखाने के लिये। मंदिर बनना चाहिये—क्योंकि एक ही चीज़ की कमी है देश मेंः मंदिर। सब बाद में, पहले मंदिर क्योंकि देश की जनता मंदिर की कमी से भूखों मर रही है।
झंडू को मोदी जी से प्यार था। उसकी मस्त चल रही थी। पर उसे क्या पता था कि उसकी मोदी मस्त लगाने वाले थे।
जब प्यारे मोदी जी ने देख लिया कि अब देश में सब मस्त है तब उनकी नज़र गई स्वर्ण पर। बेचारा दबा कुचला, किस तरह 999 वर्ग फ़िट में रहकर किसी तरह सालाना 7,99,999 रुपयों में मुश्किल से गुज़ारा करता स्वर्ण। इससे दयनीय हालत किसी की नहीं थी देश में।
सो मोदी जी ने लोक सभा में रखा स्वर्ण जाति को आरक्षण देने का बिल—जो सब के नाम पर फटने वाला था। सब ने मस्त वोट दिया और बिल फट गया भारत देश की जनता के नाम।
पर झंडू की लग गई। सेठ अब झंडू की शादी कराने से मना कर रहा है। कहता है झंडू ग़रीब है।
झंडू ने कई तर्क दिये। गणित का हिसाब समझाया।
बोला—7,00,000 मिलते है साल में, मैं ग़रीब कैसे। 7 लाख मतलब महीने का साठ हज़ार महीना। 900 वर्ग फ़ीट का घर है मेरा। कितने ग़रीब के पास रहने का घर देखा आपने। चार-बाई-चार के कमरे वाला ग़रीब होता है। मैं ग़रीब नहीं ससुर जी।
पर सेठ ने सब ठुकरा दिया।
अब झंडू अपनी ज़िंदगी से निराश है। एक झटके में मोदी ने उसकी ज़िंदगी तबाह कर दी। बेचारे को अमीर से ग़रीब बना दिया। झंडू बेचारा ग़रीब हो गया।