घपलू की मस्त चल रही थी। अब घपलू घपलू नहीं रहा था, बाबा घपलू प्रसाद हो गया था। घपलू के पिता झोलू जब इस दुनिया से टरकने वाले थे तो उन्होंने ने घपलू को बुलाया और कहा, बेटा मेरे 2100 करोड़ कहाँ हैं। घपलू क्या कहता? पिछली सरकार में रहते हुए किसी तरह नौकरी तो लग गई थी पर उसका फ़ायदा नहीं मिला। एक नोट बंदी हुई और सारा रुपया विदेश भेजना पड़ा। रुपया वापस आया तो छापे में पकड़ा गया।
घपलू को कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा था कि वो क्या करे। झोलू बापू तो टरक लिये थे पर झोलू बापू की बात घपलू को मन-ही-मन खाए जा रही थी। घपलू चाहता था कि इस दफ़े भी तो कोई तरीक़ा निकले रुपये कमाने का। उसी वक़्त उसको डिब्बे में अंधी-श्रद्धा चैनल पर ध्यान गया। घपलू ने जो देखा था उसे देख के वो दंग था। उसका बचपन का दोस्त—पप्पू—अब पप्पू साधू बन कर बड़े-बड़े प्रवचन दे रहा था।
घपलू का सिर चकरा रहा था। ये कैसे संभव था? घपलू जानता था कि पप्पू एक नम्बर का मूर्ख था। कहने को तो बाप के दम पर डिग्री घर पर रखवा ली थी, पर घपलू की तरह उसका बाप झोलू नहीं बल्कि निहायती सिद्धांतवादी था। तो फिर घपलू ने सच का पता लगाने के लिये पप्पू बाबा के यहाँ दर्शन दिया।
पप्पू बाबा का पूरा बिज़नेस लल्लन टाप लग रहा था। घपलू ने पप्पू बाबा को इशारा किया और पप्पू बाबा ने तुरंत अपना प्रवचन बंद कर अपने इस पुराने लंगोटिया यार को अपने निजी कक्ष में बुलाया। अंदर पहुँच कर घपलू ने जो देखा कि साला आँखें फटी-की-फटी रह गई। कक्ष में चार सुंदर लड़कियाँ बाबा की सेवा में ऐसे लग गई थी जैसे ब्रह्मण के क़दमों में यजमान। पप्पू बाबा जो कहते लड़कियाँ वो करती। यहाँ तक की बाबा आये गए लड़कियाँ को जगह-जगह सहला भी रहा था।
घपलू ने ये सब देख कर गला खंखारा और पप्पू बाबा ने लड़कियों को एंकात करने के कहा। फिर पप्पू बाबा ने घपलू से घर का हाल चाल पूछा। घपलू का सिर अब भी घूम रहा था। अंततः जब उससे न रहा गया तो उसने सवाल पूछ ही लिया—“ये सब कैसे?”
घपलू की बेचैनी देख पप्पू बाबा हँसा और बोला—“सब ऊपर वाले की दया है।”
इस पर पर घपलू को कुछ समझ नहीं आया तब पप्पू ने बताया कि कैसे वो पप्पू से पप्पू बाबा बना। उसने जो बताया घपलू को पहले यक़ीन नहीं हुआ। पर फिर पप्पू बाबा ने उसको वादा किया कि अगले दिन वो उसे भी घपलू से संत घपलूदास बना देगा।
दूसरे दिन घपलू उठा तो पप्पू ने अपनी चेलियों से घपलू को साधू बनने के लिये तैयार करने को कहा। लड़कियों ने घपलू के चेहरे को लीपा-पोता, उसके माथे पर भरपूर्ण हल्दी वाला चंदन लगाया, बालों को दुल्हे के सेहरे से ढका, भगवा वस्त्र पहनाया। उस दिन जब खुद को सीसे में देखा तो खुद को न पहचान पाया। उसे शक था कि कहीं उसके साथ मज़ाक़ तो नहीं हो रहा। पर फिर पप्पू बाबा का आगमन हुआ।
पप्पू बाबा ने आते ही एंकात करवाया और दरवाज़े की सिटकनी लगा के बोले—“मेरी ध्यान से बात को सुनना मेरे मित्र, ये ज्ञान मैं ने बड़ी तकलीफ़ में जी कर अर्जित किया है। आज से तुम घपलू नहीं संत घपलूदास हो। आज से तुम बाहर मंच पर बैठना और जो जी में आए बोलना, तुम्हें तब तक कुछ न होगा जब तक तुम हर वाक्य के आगे राम नहीं लगाओगे।”
घपलू ने पूछा—“पर मैं पकड़ा जाऊँगा। मुझे कुछ नहीं आता।”
पप्पू बाबा इस पर मुस्कुराया और कहीं से मच्छर मारने वाला रैकेट उठा लाया और उसे हवा में चलाने लगा। घपलू चकरा गया। उसे लग रहा था कि पप्पू पगला गया है। पर पप्पू बाबा के मन में तो कुछ और ही चल रहा था।
पप्पू बाबा बोला—“यहाँ एक भी मच्छर नहीं न, घपलू? बल्कि इस लगता है इस कमरें में कहीं मच्छर नहीं।चलो अब तुम्हें एक चमत्कार दिखाता हूँ।”
और पप्पू घपलू को पूजा करने के स्थान पर ले गया। वो स्थान बहुत ही साफ़ था। मच्छर क्या, वहाँ एक छोटा-सा कीड़ भी नहीं था। घपलू ने देखा कि उस कमरे की दीवार पूरी तरह से तमाम भगवानों की तस्वीरों से भरी थी। उस कमरे के बीच में शिवलिंग था और उस पर लटके घड़े से पानी भी टपक रहा था।
“अब ध्यान से देखना, घपलू।”—पप्पू बाबा ने कहा और मंदिर के तमाम भगवानों की तस्वीरों को हिलाया।
और जैसे सच में चमत्कार हुआ हो। पूरे कमरे में मच्छर ही मच्छर दिखने लगे। पप्पू बाबा ने मच्छर मारने वाले रैकेट को एक बार धुमाया और बीसियों मच्छर रैकेट में फँसकर तड़तड़ा के मर गए।
“कुछ समझे?” पप्पू बाबा ने कहा और घपलू ने पप्पू बाब के पैरों ने गिरकर उनका लोहा मान लिया।
उस दिन घपलू ने अपनी बाबागिरी की दुकान चालू कर ली और पप्पू बाबा के बताए उस रहस्य का लोहा मान लिया। घपलू हर वक़्त खुद को याद दिलाता था कि पप्पू बाबा ने क्या सीख दी थी। घपलू ने पप्पू बाबा से ये समझ लिया था कि अगर भगवान की छाया वो छाया थी जिसमें ख़ून चूसने वाला पप्पू बाबा और घपलू बाबा तब तक मज़े से रह सकते हैं जब तक वो चाहे। घपलू आये दिन अनाप-शनाप बोला था पर उसकी तिजोरी भरती रहती थी क्योंकि दुनिया मूर्खों से भरी पड़ी है जो कभी भगवान की छवि को हिलाकर ख़ून पीने वाले बाबाओं को हटा हीं नहीं सकती। वो जानता था कि जब तक भगवानों की तस्वीर की आड़ बनी है और इस तस्वीर को हिलाने वाला हाथ नहीं आता है, वो सुरक्षित है। घपलू को अब सरकारी आरक्षण की क्या ज़रूरत थी, अब उसे लंबा वाला आरक्षण मिला था—ख़ून पीने का आरक्षण।