नोटः- ये नाटक का दृश्य काल्पनिक है पर आज हो रही घटनाओं पर तीखा कटाक्ष है। इस नाटक का उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं पर अगर ऐसा होता है तो टिप्पणी में अपने विचार लिख बताऐं। लेखक ने किसी धर्म, समुदाय या संगठन की भावनाओं का ठेका नहीं ले के रखा है। नाटक के मंचन के लिये email द्वारा अनुमाति माँगने के बाद ही मंचन करे। नाटक का कॉपीराइट शिवशंकर गुप्ता @ bannokidiary@gmail.com के पास सुरक्षित है।
दृश्य-पार्क की पगडंडी। समय-सुबह। दिनांक-वर्तमान।
रिटायरमेंट के बाद पांडे जी की दिनचर्या बड़ी ही सिम्पल थी। रोज़ की तरह वो सुबह उठते, उम्र के साथ पेट भी बूढ़ा हो चला था, तो संघ की ख़ाकी पैंट पहनते और सैर पर निकल जाते। रास्ते में पड़ता अख़बार वाले का दर जहाँ चार जेब ख़र्च के सौ रुपयों में से पहले चार रुपये अख़बार में ख़र्च कर सुबह की शुरुवात करते।
पांडे जी का सीधा सिद्धांत था, कुछ मिले न मिले पर सुबह की गप्पें मिलना चाहिये थी। लड़का सरकारी नौकरशाह था सो टेबिल के नीचे की कमाई सीधे पांडे जी के खाते में भेज दिया करता था—इनकम टैक्स की रेड से बचने का यही ब्रम्हमंत्र पांडे जी ने लौंडे को इंटरव्यूव में जाने से पहले ही बता दिया था। बाप से लड़के तक पहुँचने वाली ये कुंजी अब पोते को देने की तैयारी थी। पर पांडे जी को अभी उससे मतलब नहीं था। पांडे जी का सारा ध्यान तो अख़बार में छपी कैटरीना कैफ़ की जाँघ और वक्षस्थल पर था।
जब पांडे जी का ध्यान उनको घूरते नौजवान पर गया तो पांडे जी ने तुरंत अख़बार के बीच के पन्ने को छिपाया और पहले पन्ने को देखने लगे। ख़बरें भी ऐसी थी की कैटरिना को देख को गर्म की देह ठंडी होने लगी। भीषण ठंड से बीस लोग मर गए थे और दो परिवारों के मर्दों ने खुद को परिवार सहित ख़त्म कर लिया था।
“च्…च्… क्या जमाना आ गया है?” पांडे जी बोलते हुए सिर हिला दिये।
“क्या हो गया, नेता जी? काहे सिर हिला रहे हो?” एक आवाज़ ने पांडे जी को अख़बार से ऊपर देखने पर मजबूर कर दिया।
“अरे भाई, आज देर कैसे हो गई आप सब को?” पांडे जी बोले। पांडे जी के बुढ़ापे का एकमात्र सहारा था उनका ग्रुप। सभी पांडे जी के गाँव के थे। पांडे जी उनमें सबसे उम्रदराज और सम्मानित व्यक्ति थे। आख़िर पांडे जी ने सब को अपने दफ़्तर में नौकरी पर लगवाने में जाराकशी जो की थी। इस कारण सभी पांडे जी को प्यार से नेता जी कहते थे। बाँये से दाहिने ओर थे शुक्ला जी, तिवारी जी, द्विवेदी जी और साथ में थे डा० महरौत्रा—ज़िला शिक्षा अकादमी के समाजविज्ञानी।
“नेता जी…” द्विवेदी जी बताने लगे, “वो मुहल्ले में जो पगली घूमती थी वो आज पता नहीं कैसे मर गई?”
“हे राम, हे राम। बड़ा अनर्थ हुआ,” पांडे जी ने दुख जताते हुए कहा।
“आप वैसे कौने बात पर निराश हो रहे थे?” शुक्ला जी ने अपने साथियों के साथ बेंच पर स्थान गृहण करते हुए पूछा।
“ये देखो। दो आदमी घर परिवार ख़त्म कर के खुद को स्वाहा कर लिये,” पांडे जी ने कह कर अख़बार दिखाया।
“अरे भाई ये सब तो होगा ही। देश में अराजकता जो पहमी है। पहले का समय अच्छा था, लोगों का जीवन बड़ा सरल था,” तिवारी जी बोले।
“सरकार अब आए दिन यज्ञ करा तो रही है शांति के लिये। और अब तो मंदिर भी बनने वाला है। उस से याद आया, आप की मंदिर के पास वाली ज़मीन की क़ीमत कुछ बढ़ी,” पांडे जी ने तिवारी जी से पूछा।
“अरे आसमान छू रही है। वैसे आज का अख़बार बड़ा ही रंगीन था। कैटरीना की फ़ोटो देखी?” तिवारी जी ने पूछा। इस पर शुक्ला जी ने मुँह बना लिया।
“तुम साले रांड के रांड ही रहोगे। अरे पांडे जी को कैटरीना से क्या मतलब? लड़के को इस बार गिफ़्ट में कम्प्यूटर मिला है। उस पर ये हब वग़ैरह देखेंगे,” शुक्ला जी बोले और सारे आदमी ठहाका लगा के हँसने लगे।
“चलो सब को चाय पिलाता हूँ,” पांडे जी बींछें निकाल कर बोले। उन्होंने चारों ओर अपनी बाज़ दृष्टि घुमाई और उनको चाय वाला आता दिखा। उन्होंने सीटी बजा के चाय वाले को बुलाया और चाय वाले ने सबको चाय दी और पैसे ले के चलता बना।
“वैसे आज का अख़बार बड़ा ही रंगदार था,” शुक्ला जी बोले।
“अमां शांत रहो यार। वो ख़बर पढ़ी। आरक्षण ने एक दलित को आईएएस बना दिया और टापर लड़की रह गई। साला देश ऐसे ही बरबाद हो जाएगा,” पांडे जी बोले।
“मैं ने बात की उस के घर वालों से। सोचा था कि आपसे शिफारिस करने के लिये बोलूँगा। एक करोड़ की बात चल रही है,” तिवारी जी ने कहा।
“अमां यार, तुम अब भी एक करोड़ की बात कर रहे हो। दस लाख तो केवल पंडित ले लेगा सेटिंग के। फिर पाँचों इंटरव्यूवर्स का तीस-तीस लाख का रेट फ़िक्स है। पार्टी कैसी है?” पांडे जी ने पूछा।
“पार्टी तगड़ी है। कितना बोलूँ?” तिवारी जी ने सलाह ली।
“पाँच करोड़ बोलो। तीन अभी दो इंटरव्यूव के बाद। आज कल सेटिंग बड़ी मुश्किल से होती है। साला ये छोटी जात के लौंडे भर लिये हैं सरकार ने। मादरचोद आपने बाप की भी नहीं सुनते। सुना नहीं, साले चमार ने पाठक की रेती बंद कर दी,” पांडे जी भड़कते हुए बोले।
“अरे, नेता जी, काहे गरम हो रहे हो। सरकार तो अब अपनी है। कुछ दिन में तबादला हो जाएगा। लड़का तो आपका हइये तेज,” तिवारी जी ने कहा और पांडे जी वापस शांत हो गए। इस वार्तालाप की उत्तेजना ने उनके पेट को जगा दिया था।
“पर मानना पड़ेगा, पांडे जी। इस बार अपने नेता ने क्या दाव खेला है। मंदिर का मुद्दा फँसा दिया है,” शुक्ला जी बोले।
“अरे तो दो सौ करोड़ का पार्टी फ़ंड भी तो दिया है। सारा प्लान तो मेरा था। वहाँ मंदिर बना और अपनी ज़मीन सौ करोड़ की अपनी ज़मीन दो हज़ार करोड़ में जाएगी,” पांडे जी अपनी प्लानिंग पर मन ही मन ख़ुश होते हुए बोले।
“पर पांडे जी, वो अनाथालय की ज़मीन का क्या? पहले गुंडे यादव को भेजा, फिर थानेदार ठाकुर को पर साला बुढ्ढा ज़मीन छोड़ ही नहीं रहा है। अरे उसको उससे बड़ी ज़मीन देने की भी बात की पर मान ही नहीं रहा है,” शुक्ला जी ने कहा।
“किसको भेजा यार तुमने। मैं दद्दू यादव से कहता हूँ,” तिवारी जी बोल पड़े, “वो बुद्ढे को मार मार के बाहर करेगा। ज़्यादा दिन नहीं बचा है चुनाव में। अगर अभी ज़मीन हाथ में न आई तो जाने कब आएगी। मंदिर का पुजारी भी कह रहा था कि समय रहते अनाथालय की ज़मीन मंदिर में न आई तो बड़ा नुक़सान होगा। कौन ऐसे मंदिर में आना चाहेगा जिसके बग़ल में भिखारियों के पिल्ले पल रहे हो। मैं ने प्राइवेट स्कूल खोलने का सोचा है पर उस अनाथालय के रहने पर कोई पैरेन्ट फ़्री में भी वहाँ नहीं भेजेगा।”
“सब हो जाएगा। परेशान न हो। दो सौ करोड़ ऐसे ही थोड़े दिये है पार्टी फ़ंड में। और मंदिर की तो ऐसी ब्यार बनी है इस बार कि एक छोटी-सी चिंगारी और बची खुची मस्जिद के साथ अनाथालय भी ज़मींदोज़,” पांडे जी बोले और चाय की चुस्की लेते हुए अपने सुहाने भविष्य का सपने का दिन में मज़ा लेने लगे। उन सब के अंत में महरोत्रा जी आराम से बैठे अख़बार में को पढ़ रहे थे।
“इस महरोत्रा को क्या हो गया?” पांडे जी ने पूछा।
“इसके कानपुर में आज हड़ताल है,” शुक्ला जी ने अपने कान की ओर इशारा कर के कहा और सब के सब ठहाका लगा के हंस पड़े।
वो दिन बहुत अच्छा था। बहुत ही अच्छा। अब पांडे जी को लग रहा था कि उनका पेट ढंग से साफ़ होने वाला है। मन जो अब ख़ुश हो गया था उनका। अब तो मंदिर बन के रहना था।