क्या आप ने लड़के से ये बातें की…

क्या आपने कभी अपने लड़के से कहा किः-

“बेटा, किसी लड़की का हँसना-बोलना उस पे छींटाकशी, उसे छेड़ने, उसे परेशान करने का न्योता नहीं।”

या फिर

“बेटा, किसी लड़की का शरीर न तुम्हारी जायदाद है न ही उसके साथ सोने से तुम्हारी कोई इज़्ज़त बनती है।”

या फिर

“बेटा, किसी लड़की के साथ होने की सबसे पहली शर्त उसकी सहमती है।”

न ही आपने उसे अपने पास बैठा कर समझाया होगा कि, “बेटा, किसी लड़की के साथ तुम्हें जोर ज़बरदस्ती नहीं करनी चाहिये क्योंकि इसका मतलब बलात्कार होता है और अगर कोई लड़की नशे में है तो इसका मतलब ये है कि वो किसी भी तरह की सहमती देने के काबिल नहीं न कि वो एक आसान शिकार है।”

और सबसे बेहतरीन

“संभोग का अनुभव न तो तुम्हारे व्यक्तित्व की कसौटी है न ही किसी औरत के।”

क्या आपको वो पल याद है जब आपने अपने लड़के को समझाया हो कि किसी औरत को “रंडी” कहना दुनिया का सबसे बड़ा अपराध है?

ख़ुद से पूछिये कि आपने आज तक अपने लड़के को ये बातें क्यों नहीं समझाई?

मैं जानता हूँ कि आपने अपने बेटों से कभी ऐसी कोई बात नहीं की होगी क्योंकि आप किसी और को कुछ और ही समझाने की कोशिश में व्यस्त थे।

“ये कैसे कपड़े पहन रखे हैं तुमने? सिर पर पल्लू या हिजाब क्यों नहीं है?”

“जैसा कपड़ा पहनोगी वैसा ही सलूक होगा तुम्हारे साथ।”

“अजनबियों से बात मत किया करो न ही उन को तुम पर हमला करने का कोई बहाना दो।”

“तुम्हें अपनी सुरक्षा करनी चाहिये, खुले तरह के कपड़े को आदमी न्योता समझता है।”

ऊपर दिये वाक्य को आप में से वो माता-पिता अच्छे से पहचान गए होंगे जो अपनी बेटी का भला-बुरा सोचते है।

दुनिया की सभ्यताओं की यही एक समस्या है। यहाँ सभी सीख लड़कियों के लिये है। हमने लड़कियों को सँभल कर रहना और घर की इज़्ज़त बचाने की सीख दे डाली पर क्या हमने कभी अपने लड़कों को समझाने की कोशिश की कि किसी लड़की को छेड़ना या उस पर हमला करना दुनिया का सबसे निंदनीय कृत्य है? उलटे हम लड़कों को बचाने के लिये ये ज़रूर कहेंगे कि लड़के ऐसे ही होते हैं। लड़की से तो हमने उसके घर से बाहर निकलने पर बीसों सवाल पूछ डाले पर क्या लड़के से कभी पूछा कि वो कहाँ घूमता रहता है?

हम सभी जानते हैं कि दुनिया लड़कियों के लिये कितनी असुरक्षित होती जा रही है पर हमें नहीं पता कि ऐसा क्यों होता जा रहा है। इसका कारण भी है। हम एक ऐसे समाज को पाल रहे हैं जो पीड़ित को परेशान करने में विश्वास रखता है। यहाँ अदालत में बैठे जजों को इतनी तमीज नहीं है कि वो किस तरह वकील को उस औरत को ज़लील करने से रोक सके जो पहले से प्रताड़ित है। उलटे हमारे इन न्याय के देवताओं को यह सिखलाया जाता है कि औरत के साथ बलात्कार हुआ है तो ये उसकी ख़ुद की गलती से हुआ होगा।

दुनिया बुरी है और ये और बुरी होती जा रही है पर सवाल उठता है क्यों।

अफ़्सोस, इस दुनिया को बुरा बनाया है हम ने। जी हाँ, आप ख़ुद अपनी बेटी बहिन की असुरक्षा के लिये जिम्मेदार हैं। सुन कर आपको अजीब लग सकता है पर जरा सोचिये क्या ये वाक़ई सच नहीं।

अरे आप ही तो हैं वो जो अपने बेटियों के बोलने-चालने तक पर नियंत्रण करना चाहते हैं पर अपने बेटों के चाल-चलन पर कोई टिप्पणी सुनना भी पसंद नहीं। याद कीजिये जब आप भारतीय संस्कृति का हवाला देकर “लड़के ऐसे ही होते हैं और वे ऐसे ही रहेंगे” कहते फिरते थे। क्या तब आपको ये बात महसूस नहीं हुई कि आपका लड़का लड़कियों को सिर्फ़ भोग की वस्तु समझने लगा है।

हम बेटियों के किसी भी अंजान आदमी से बात करने पर अपनी पैनी नज़र गड़ाए हुए हैं पर हमें इस बात का पता ही नहीं कि हमारा लड़का लड़कियों से छेड़छाड़ करता है। हमें जवान लड़की के घर पर रहते हुए चिंता होती है पर जिस जवान लड़की को हमारा लड़का परेशान करता है उसकी कोई फिक्र नही। हम लड़की के कपड़ों पर टिप्पणी तो करते हैं पर ये भूल जाते हैं कि बलात्कार बुरके में सिर से पाँव तक ढँकी औरतों का भी होता है। हम लड़की को घर में बंद करके उसकी सुरक्षा करने का दावा करते हैं पर ये भूल जाते हैं कि बलात्कार करने वाला लड़की का पिता, भाई, चाचा, ताऊ या पड़ोसी भी हो सकता है।

10 में 5 लड़कियों के साथ कभी न कभी शारीरिक शोषण, बलात्कार जैसा कुछ हुआ है और इसे करने वाला कोई और नहीं वहीं पुरुष समाज है जिस को कभी ये नहीं समझाया जाता कि औरत भी अपनी मर्जी हो सकती है। जहाँ प्यार करने पर गला काट देने की प्रथा हो वहाँ के पुरुष औरत की सहमति के बारे में क्या समझेंगे। गलत। ये वहीं पुरुष है जिन्हें उनके माता-पिता ने औरत के बारे में नहीं बताया।

माता-पिता अपने लड़के को सहमति के बारे में बताने पर असहज महसूस करते हैं पर उन को लड़की को यह समझाने में कोई गुरेज़ नहीं कि एक मर्द उसके साथ क्या कर सकता है। हम लड़के को तो शरीर से मजबूत बनाते हैं पर लड़की को कमजोर करने की कोशिश करते है।

भले आप कितने भी बहाने दे लें पर आप इस बात से मुंह नहीं मोड़ सकते कि आप ने लड़की को बांधने की कोशिश की जबकि आपको लड़के को सही बातें सिखानी चाहिए थी। पुरुष का वर्चस्व बनाने की होड़ में माता-पिता यह भूल जाते हैं कि बलात्कार करने वाला हरामी एक आदमी ही होता है जिसे ऐसा बनाने वाला हमारा समाज ही है।

जब तक हम लड़की को समझाते रहेंगे और यह कहते रहेंगे कि “लड़के तो लड़के ही रहेंगे” तब तक कुछ सही नहीं होने वाला। आपको औरत के हँसने, बोलने, चाल-चलन और कपड़े पर छींटाकशी करने और आँखें दिखाने की जगह अपने लड़के, भाई, दोस्त को समझाना चाहिए कि वो औरत को भोग की वस्तु समझना बंद करे और उस पर अपना हक न दिखाए।

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