सुखी वैवाहिक जीवन के लिये कुछ उपाय…

विवाह न तो प्रेम की शुरुवात है न ही उस का अंत। यक़ीनन ज्यादातर शादियां चलती-खटारा-का-नाम-ज़िंदगी हैं पर ये टूट भी सकती हैं। हमारे देश में ये भ्रम है कि अब तलाक़ ज्यादा हो गए हैं। तलाक़ या विवाह विच्छेद को लेकर पहले लोग जागरूक ही कहाँ थे? आज लोगों में जब जागरूकता आई है तब उन्होंने अपनी बेकार हो चुकी शादियों को ख़त्म करने का काम करना शुरू किया है।

हम अकसर सुनते हैं कि किसी महिला ने पति को इसलिये तलाक़ दे दिया क्योंकि पति खर्राटे लेता था। ऐसी ख़बरें चार पाँच साल पहले बहुत मजेदार व्यंग्य भी थीं पर लोगों की बुद्धि में ये बात नहीं घुसती थी कि ऐसा कैसे हो सकता है। ज़ाहिर है, शादियां संबंध हैं, संबंध टूट सकते हैं। अफ़्सोस कि प्रेम-विवाह भी टूटते हैं। ताकी आपके साथ ऐसा कुछ न हो इसलिये इन उपायों को गाँठ बाँध लीजियेः-

1. कुछ चीज़ें हैं जो शादी के बात बदलती हैं तो कुछ पहले जैसी रहती हैं। चीज़ों का बदलना और उस पर हमारी प्रक्रिया ही ये तय करती है कि शादी किस मोड़ पर ख़त्म होती है। शादी के बाद कुछ खास ग़लतियाँ शादियों को संकट में डाल देती हैं। आईये जानते हैं कैसे बचे उन ग़लतियों से। शादी के बाद कुछ खास बदलाव होते हैं। भारतीय परिवेश में आदमी शादी के बाद भी अपने परिवार के साथ रहता है परंतु औरत को अपना परिवार त्यागना पड़ता है। सिर्फ़ परिवार ही क्यों, उसे अपने पड़ोसी और दोस्त भी त्यागने पड़ते हैं।

सच है और ऐसे में जीवनसंगिनी हर उस व्यक्ति से बात करना चाहेगी जिससे वो मिलती जुलती है। याद रखिये, शादी हो जाने के बाद औरत आपकी ग़ुलाम नहीं बन जाती, न ही उसे ग़ुलाम बनाने की कोशिश करनी चाहिये। अगर आपकी कोई महिला मित्र आपकी जीवनसंगिनी मिलती है तो आपकी जीवनसंगिनी उससे तुरंत मित्रता करना चाहेगी। ऐसे में अगर आपका पुरुष मित्र भी आपकी जीवनसंगिनी के सामने आता है तो वो उससे भी ममतामय और मैत्रीपूर्ण व्यवहार करने की कोशिश करेगी। हो सकता है कि उसका व्यवहार आपको अनुचित लगे परंतु जीवनसंगिनी के लिये वो सामान्य हो सकता है। ऐसे में अगर आप जीवनसंगिनी को मित्र के सामने से हटाने का कोई भी प्रयास करते हैं तो वो चिढ़ व अवसाद पैदा करेगा। याद रखिये, जैसे आपको नज़रंदाज़ होना पसंद नहीं वैसे ही आपकी जीवनसंगिनी को भी ये नहीं भाता है।

उपायः- इस समस्या की जड़ अपने नज़रिये में है। आपको लोगों के प्रति अपना नज़रिया बदलने की ज़रूरत है। साथ ही आपको तुरंत प्रक्रिया देने की आदत से बचना चाहिये। हम समय हम किसी वाद-विवाद प्रतियोगिता में नहीं जी रहे होते जहाँ तुरंत उत्तर आवश्यक हो। अगर आपकी कोई शिकायत हो तो अकेले में उस पर बात करें। इससे जीवनसंगिनी आपकी बात को सुनेगी भी और समझेगी भी। ये ज़रूरी है कि जब आप जीवनसंगिनी से शिकायत करें तो आस-पास कोई न हो।

2. ये सोच की स्त्री की किस्मत ही त्याग है एक बहुत ही तुच्छ और ग़लत सोच है। लड़की जब अपना परिवार त्याग कर लड़के के परिवार में आती है तो उसे नए लोगों का सामना करना पड़ता है। कुछ के स्वभाव उसे समझ में आते हैं तो कुछ के नहीं। एकाएक होने वाला ये बदलाव चिढ़ को जन्म देता है। लड़का तो अपने व्यवसाय में मशग़ूल हो जाता है पर लड़की एकदम से बेरोजगार हो जाती है। ये उसके आत्मसम्मान पर चोट पहुँचाता है और चिढ़ और बढ़ जाती है।

उपायः- आपको याद होगा कि कैसे आपको पिता जी से रुपये मांगने में शर्म आती थी। किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिये ये बहुत बड़ा मुद्दा है और कुछ के लिये तो यह हर किसी बात से ऊपर है। कभी आपने ध्यान दिया है तो महिला पुरुष से ज्यादा काम करती हैं और फ़िर भी अपने जेब खर्च को निकालने के लिये कोई कार्य करने की कोशिश करती है। यक़ीनन महिला पुरुषों से अधिक खुद्दार होती है।

शादी के बाद सब की कोशिश यही होती है कि महिला सिर्फ़ घर में काम करे। कुछ सालों से इस व्यवहार में कमी आई है पर सिर्फ़ पुरुष के फ़ायदे के लिये। शादी के बाद पुरुष का सबसे पहला कार्य होना चाहिये महिला को उसके पैरों पर खड़ा करना, अगर वो पहले से अपने पैरों पर खड़ी हो तो उसके काम में बढ़ावा देना। इससे भले लोग कुछ भी कहे पर जीवनसंगिनी की नज़रों में आपके लिये सम्मान और प्रेम बढ़ जाता है। याद रखिये, आपका प्रत्येक निःस्वार्थ प्रयास आपके प्रेम की निशानी है।

3. शादी के बाद जो सबसे बड़ा बदलाव आता है वो है बच्चे। हमारे देश में बच्चों के पैदा होने में की कोई योजना नहीं होती। 21 वीं सदी में आ कर भी आम भारतीय सिर्फ़ “रात-की-ग़लती” के कारण बच्चे पैदा कर रहा है। कुछ मर्दों की सोच होती है कि बच्चों के पैदा होने पर महिला उनसे बंध जाती है तो कुछ का भ्रम है कि इससे महिला की चिढ़ कम होती है। विज्ञान बताता है कि बच्चे के पैदा होने पर चिढ़ और अवसाद पैदा करने वाले हार्मोन का बढ़ना और संचार होना मुमकिन है। उस पर बच्चे की देख रेख में हाथ न बँटाने की मर्द की सोच आग में घी का काम करती है।

हमारे देश की सबसे बड़ी कमी। हमें सिर्फ़ इस बात से मतलब है कि बच्चे पैदा हों, हमें इस बात से कोई मतलब नहीं कि वो आगे चलकर क्या बन जायेंगे। ऐसे में परिवार वालों की पोता-देखने-की-ज़िद एक मानसिक बीमारी है जो उन्हें समाज वालों ने दी है। बच्चे पैदा करने में पुरुष का योगदान सिर्फ़ संभोग तक का होता है। उसके बाद महिला नौ माह तक बच्चे को कोख में पालती है, शरीर का दशा बिगाड़ लेती है, दर्द झेल के बच्चे को जन्म देती है। ऐसे में जब बच्चे महिला की ख़ुद की सहमति के बिना होते हैं तो वो उस पर बोझ बन जाते हैं।

उपायः बच्चे पैदा करना औरत के लिये एक बड़ी जिम्मेदारी है। ऐसे में पुरुष को चाहिये कि वो तब तक रुके जब तक महिला ख़ुद बच्चे पैदा करने की जिद न करें। ये उपाय यहाँ अटपटा लग सकता है पर जब आप इसे उपयोग में लायेंगे तब ये एकदम सटाक बैठेगा। रही बात वैवाहिक सुख की तो आज कल निरोधों की कमी नहीं। एक छोटे से कॉपर के यंत्र से आप दस साल तक के लिये प्रजनन को रोक सकते हैं।

  1. शादी के बाद एक ऐसा बदलाव भी आता है जिस पर लोगों का कभी ध्यान नहीं जाता। शादी से पहले अगर आप प्यार करते थे तो आपको याद होगा कि आप साथी अकेले में ही बातें करते थे। शादी के बाद जब साथी साथ होता है तो ये आदत स्वतः बदल जाती है। शादी के बाद हम साथी से अकेले में कम और दूसरों के सामने ज्यादा बातें करते हैं। आपको शायद ये पता न हो पर हमारी कही बातें का असर अन्य लोगों की मौजूदगी पर भी निर्भर करता है। जो बातें दूसरों के सामने करने से साथी को सुकून मिलता हो वही अकेले में करने से साथी को चिढ़ हो सकती है। इसी तरह जिस मज़ाक़ को अकेले में करने से आपकी जीवनसंगिनी हंस पड़े वही मज़ाक़ औरों के सामने करने पर वो ख़ुद को ओछा महसूस कर सकती है।

कहा जाता है घर की मुर्ग़ी दाल बराबर। ये सामान्य इनसानी व्यवहार का सिर्फ़ एक रुप है पर सत्य नहीं। शादी के बाद अधिकतर प्रेमियों का स्वभाव भी बदल जाता है। जीवनसंगिनी को पुरुष दोस्त के रुप में समझने लगता है। अफ़्सोस कि दोस्त पुरुष भी होते हैं पर हम जीवनसंगिनी को पुरुष दोस्त की तरह ही समझने लगते हैं। ये ग़लती है। आप ख़ुद सोचिये, जिस पुरुष दोस्त के मुँह से आप गालियां भी हँस कर झेल लेते हैं वहीं किसी महिला दोस्त को गालियां देकर आप क्या पायेंगे? इसी तरह जो मज़ाक़ आप पुरुष दोस्तों से कर लेते हैं उन्हें ग़लती से जीवनसंगिनी से न कीजियेगा।

उपायः- मज़ाक़ के कई रुप होते हैं। कुछ मज़ाक़ खुद पर किये जाते हैं और कुछ दूसरों पर। कोशिश करिये कि किसी और के सामने जीवनसंगिनी पर कभी कोई मज़ाक़ न करें। जीवनसंगिनी से मज़ाक़ चलता है पर जीवनसंगिनी पर मज़ाक़ भारी पड़ सकता है। जीवनसंगिनी पर मज़ाक़ अकेले में करने पर कोई घाटा नहीं पर अगर आपका बच्चा भी साथ है तो तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा वाला काम होने वाला है।

  1. शादी के बाद जो आख़िरी बदलाव आता है वो है हमारा चीज़ों और लोगों के प्रति बदला रवैया। ऐसा क्यों होता है कि जिस साथी के लिये कभी हम घरवालों से लड़ गए थे उसी साथी की बातों और ज़रूरतों को हम शादी के नज़रंदाज़ करना शुरु कर देते हैं। घरवालों की बातें मानने में कोई बुराई नहीं पर हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। शायद घरवालों की जिन बातों को न मानने का घरवालों पर कोई प्रभाव न पड़े उसी बात को मान लेने से आपकी संगिनी टूट जाए।

परिवार का सबसे नया आयाम यह है छोटा परिवार सुखी परिवार। कहा जाता है कि घर में जितने बरतन होंगे उनका उतना ही शोर होगा। लड़की अपने परिवार को छोड़कर दूसरे परिवार में जाती है तो वो थोड़ी शांति और वक़्त चाहती है सबको समझने के लिये। ऐसे में दसियों परिवारीजन की भीड़ उसके सामने खड़ी होगी तो यक़ीनन वो परेशान हो जायेगी।

उपायः- भले ही आप कितने तर्क दे दें, माता-पिता के प्यार की दुहाई दे लें, संस्कारों की दुहाई दे लें पर सच यही है कि परिवार में रहने से जीवनसाथियों के प्यार पर अंकुश लग जाता है। उस पर बच्चे प्यार के रिश्ते के लिये किसी दलदल से कम नहीं। याद रखिये, शादी के बाद के 5-10 साल आपके प्यार के लिये बहुत ज़रूरी होते हैं। अच्छा यही होता है कि शादी के शुरुवाती सालों में आप शहर में रहकर भी परिवार से दूर रहें। दूरी हमें हमारे अपनों की क़ीमत बताती है और उन रिश्तों की पहचान कराती है जिन्हें हम दिल से चाहते हैं।

दोस्तों, आख़िर ऐसा क्यों होता है कि जिस जीवनसाथी को हमने विवाह पूर्व हज़ारों प्रेमपत्र भेजे थे उसको विवाह बाद हम एक प्यार भरा SMS भी नहीं भेजते? जीवनसाथी से हर वक़्त प्यार करना रोज की भागा दौड़ी में संभव नहीं पर वक़्त आने पर प्यार भरा एक भावुक प्रेमपत्र आपके संबंधों में ताज़गी ला सकता है। क्या हुआ अगर जीवनसाथी कमरे में आपके साथ रहता है? क्या हुआ अगर आप अपने जीवनसाथी से आमने सामने बात कर सकते हैं? उठते ही अपने जीवनसाथी को प्यार भरा चुंबन दीजिये, उसे गले से लगा लीजिये, बाहर जाने से पहले प्रेमपत्र दीजिये, दूसरे कमरे में बैठे-बैठे फोन कीजिये और दिल का हाल सुना दीजिये। यक़ीन मानिये, ये उपाय काग़ज़ पर जितने अच्छे लगते हैं उतने ही असल ज़िंदगी में भी हैं।

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