घपलू का आरक्षण…

घपलू जब पैदा हुआ तो उसके माँ-बाप बहुत खुश हुए। आख़िर चार बार गर्भ गिराने के बाद ही तो घर का चिराग पैदा हुआ था। उसके पैदा होते ही उसके भविष्य का पूरा लेखा जोखा तैयार कर दिया घपलू के बाप झोलू ने। बेटा बड़ा होगा तो उसको बड़ी कम्पनी या सरकारी नौकरी में लगवा दूँगा और फ़िर दहेज में 50 लाख रुपये माँगूंगा। आख़िर वो अपने लड़के को पढ़ाएगा-लिखाएगा तो उस सब का खर्चा ऐसे ही तो निकलेगा।

घपलू के बाप की तैयारी बिल्कुल सीधी थी, पर लड़का बिल्कुल टेढ़ा। शराब और सिगरेट की लत घपलू को बाप से मिल गई और लड़कियों को ओछा और कमजोर देखने की आदत रक्षाबंधन से।

पर घपलू बेफिक्र था। घपलू का बापू—झोलू—बड़ा जमींदार था और गांव का सरपंच। उसके पास रुपए की कोई कमी नहीं थी। घपलू ज़िंदगी की साज बजाता चला गया और फिक्र को धुँऐ में उड़ाता चला गया। अब जिसने अपनी ज़िंदगी की बजाई हो उसका क्या होगा? हर महीने हज़ारों की शराब पीने वाले बाप-बेटे के पास अंततः कुछ नहीं बचा। जो थोड़ा बहुत था तो वो लड़की की 50 लाख की शादी में चला गया। ज़मीन, जायदाद सब अय्याशी में बह गया और 10 लाख रुपये साल की आय में ज़िंदगी काटना दूभर हो गया।

घपलू के पास कोई काम नहीं था। उसने कभी कुछ सीखा ही नहीं, पर झोलू उसे सरकारी नौकरी दिलाना चाहता था। नौकरी मिल भी जाती, पर फ़िर आई ‘’पोलू पार्टी सरकार’’। झोलू अपने बेटे घपलू की नौकरी के लिये पोलू पार्टी के विधायकों की खूब चापलूसी करता था, पर पोलू पार्टी केवल अपने जाति के लोगों के लिये थी। पोलू पार्टी ने पोलू लोगों की हर जगह भरती कराई, ज्यादातर गैरकानूनी तरीक़े से। एक जगह तो 1 लाख नौकरी में 80 हजार पोलू लोग भर लिये। मामला तब से हाईकोर्ट में लटका है।

घपलू के बाप झोलू को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। ऊंची जाति का होने के कारण घपलू की सरकारी नौकरी मिलने की संभावना कम थी और कोई छोटी नौकरी करना उनकी शान के ख़िलाफ़ था। जमादार की नौकरी मिली थी तो एक दलित को 5 हजार देकर अपना काम करवाने के बाद बचा 25 हजार आ जाता था, पर उतना काफी नहीं था। और कोई ऊपर की कमाई वाली नौकरी के लिये बहुत हाथ-पैर मारे, पर सब बेकार। उस पर पोलू पार्टी ने पोलू लोगों को ही पुलिस जैसी ऊपर की कमाई वाली सरकारी नौकरी देने की कसम खा रखी थी। झोलू को अब सिर्फ़ एक ही तरीक़ा दिखता था, आरक्षण।

उसने देखा कि सिर्फ़ वो ही आरक्षण के लिये नहीं मर रहा, जितने भी झोलू लोग थे सबके बेटे नाकारा थे, सबको आरक्षण चाहिये थे। अब दो ही तरीक़े से आरक्षण मिल सकता था, या तो सरकार को झुका के या आरक्षण ख़त्म करा के। झोलू ने अपने लोगों को धरने पर बैठाना शुरू किया। झोलू लोगों के पास कोई काम तो था नहीं, सो सारे झोलू अपने घपलू बच्चों के साथ धरने पर बैठ गए। ताकि पुलिस उन्हें खदेड़ न सके इस लिये सब ने अपनी बीवी-बेटियों को बंदूक की गोली खाने के लिये धरने में सबसे आगे बैठा दिया।

जल्द ही धरना दंगे में बदल गया। घपलू के साथी निचली जाति की औरतों (जिन को वो नीचा मानते थे) का बलात्कार करने लगे और दुकानें लूटने लगे। हिंसा एक शहर से अन्य प्रदेश में फैली और फ़िर सरकार ने आरक्षण की बात मान ली। हज़ारों करोड़ रुपये की संपत्ति दंगे में तबाह होने के बाद सारे झोलू लोग अपने-अपने घपलू को सरकारी नौकरी दिलाने के लिये तैयारी करने लगे।

1 लाख रुपये में तहसीलदार ने जाली आय प्रमाणपत्र बना दिया और 20 लाख लेकर अधिकारी ने घपलू को नौकरी दिला दी। उस दिन से आज तक घपलू 21 लाख को 2100 करोड़ बनाने के लिये घपले-पर-घपले कर रहा है। कहीं आप भी घपलू तो नहीं? अगर हाँ तो बैठे क्यों हो? दंगे करो, मार काट मचाओ, बंदूक की नोक पर आरक्षण पाओ और फ़िर सरकारी नौकरी मिले तो घपले करो। घपलू होने का फर्ज़ निभाओ।
देश में जिस दिन झोलू, घपलू और पोलू का राज होगा उस दिन के बाद सिर्फ़ ये ही तीन दिखेंगे। झोलू झोल करेगा, घपलू घपला और पोलू खोखली सरकार बना कर देश का बंटाधार कर देगा। बाकी बचे हम और आप जैसे लोग—जो झोलू-घपलू या पोलू नहीं—तो हम सिर्फ़ एक-दूसरे का मुँह ताकेंगे और देशभक्ति और देशद्रोहियों की पहचान करते रहेंगे क्योंकि हमारे हिसाब से झोलू, घपलू और पोलू देशद्रोही नहीं हैं।

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