दोस्तों, वैलेंटाईन डे क़रीब है। इसका मतलब आप समझते हैं? फ़िर से प्रेमी सड़कों पर प्यार को जताने उतरेंगे, उनके बीच में इनसानों की खाल में होंगे वो भेड़िये जिन्हें प्यार का मतलब जिस्मानी सुख ही लगता है। पर इतना ही नहीं। सड़क पर रखवाले की खाल में उतरेंगे वो धर्म-संस्कृति और समाज के वो ढेकेदार जिनके लौंडें हाथ में लठ्ठ लेकर प्यार की परिभाषा निर्धारित करने हर साल आते हैं। कमाल है, प्यार की परिभाषा लठ्ठ के लौंडें लिखते हैं। यक़ीनन परिभाषा भी हिंसक होगी।
हर साल मैंने यही तो देखा है। होली पर हनुमान और राम के कथित भक्त मथुरा में विदेशी लड़कियों की भीगी चोली से झलकते जिस्म को निहारने जाते हैं, फ़िर यहीं भक्त वैलेंटाईन डे को भारतीय संस्कृति के ख़िलाफ़ घोषित करने लठ्ठ लेकर निकल पड़ते हैं। ये हर साल होता है। पर सवाल ये उठता है कि वैलेंटाईन डे है क्या? और क्या ये भारतीय संस्कृति के ख़िलाफ़ है? आईये जानते हैं।
क्या है ये वैलेंटाईन डे और कैसे बना?
सब शुरु हुआ एक कुर्बानी से। न… न, किसी ने किसी की कुर्बानी नहीं दी, किसी की कुर्बानी ली गई। किस्सा है संत वैलेंटाईन का। जी हाँ, सिर्फ़ भारत ही नहीं, हर देश और सभ्यता में संत होते हैं। संत वैलेंटाईन रोम के भी थे और टर्नी के भी। गाथा है कि संत वैलेंटाईन ने रोम के सैनिकों का विवाह कराया था जिसके लिये उनको मार डाला गया। मतलब संत वैलेंटाईन तो ज्यादा भारतीय प्रवृत्ति के हुए। यहाँ तो माँ-बाप अपने बच्चों की शादी कराने के लिये उनकी जान लेने तक को तैयार हैं। सैनिकों के प्रेम की लड़ाई लड़ने के लिये भी संत वैलेंटाईन को प्रेम का वैलेंटाईन कहा जाता है।
भारत में वैलेंटाईन डे पर होने वाला विरोध दुखदायी भी है और अफ़्सोसनाक भी। दुखदायी कि जिस देश में राधा-कृष्ण नाम के प्रेमी थे उस देश में प्रेम को अपराध को तरह दिखाया जाता है। यह अफ़्सोसनाक है क्योंकि युवा वैलेंटाईन डे को शारीरिक संबंध बनाने के लिये मुकम्मल दिन के रुप में देखते है। यक़ीनन प्रेम में ही शारीरिक संबंध बनाया जाता है और अगर शारीरिक संबंध बनाते वक़्त प्रेम नहीं तो वह बलात्कार है। पर वैलेंटाईन डे अगर कोई वर्त नहीं तो ये संभोग करने का दिन भी नहीं। ये प्यार करने से ज्यादा प्यार जताने का दिन है।
तो इसका मतलब है कि वैलेंटाईन डे किसी भी रुप से पश्चिमी सभ्यता नहीं है। शादी के लिये ज्यादा उत्सुक तो भारतीय होते हैं, यहाँ तक की यहाँ के कुछ स्वंभू संत भी शादी के उत्सुक रहते है… अरे नहीं, वो तो सिर्फ़ शारीरिक सुख के लिये उत्सुक रहते है। इन कथित भारतीय संत, जो बच्चियों का शारीरिक शोषण को प्रभू का प्रसाद बताते है, इनसे अच्छे तो संत वैलेंटाईन जो जैसे भी थे सच्चे थे।
वैलेंटाईन डे का विरोध और विरोध के लिये दिये जाने वाले तर्क
तर्क संख्या 1 – वैलेंटाईन डे सिर्फ़ हवस मिटाने के लिये मनाते हैं।
तर्क संख्या 2 – प्रेम सिर्फ़ बंद कमरे में होना चाहिये वरना हम लठ्ठ चला देंगे।
तर्क संख्या 3 – हम घर की इज़्ज़त को बचा रहे हैं। कुछ हो जायेगा तो कौन जिम्मेदार होगा?
तर्क संख्या 4 – ये हमारी संस्कृति नहीं।
तर्क संख्या 5 – मुझे पसंद नहीं।
और तर्कों के जवाब
तर्क संख्या 1 का जवाब
ऐसा सोचने वाले की सोच कैसी है ये जताने की जरूरत नहीं। इस तरह का विकृत तर्क देने वाले कैसे होते हैं? ये ख़ुद को हनुमान, राम और महादेव का भक्त कहते हैं और राह चलती हर लड़की को नज़रों से ही नंगा करने की कोशिश करते हैं। अरे ऐसे लोग तो शादी भी सिर्फ़ अपनी बढ़ती हुई हवस को मिटाने के लिये करते हैं। ऐसे लोगों की नज़र में औरत या तो माँ की नौकर होती है या तो घर की वेश्या। शादी करने के लिये के ऐसे लोग लड़की के गले से लेकर नितंब तक नाप डालते हैं (वरना जो लड़की कुछ देर पहले चाय लेकर आई हो उसको चलने के लिये कहने का क्या मतलब है)। ऐसे लोगों को शायद पता नहीं पर वैलेंटाईन डे पर माँ और बहिनों से भी प्यार जताया जाता है।
तर्क संख्या 2 का जवाब
प्यार सिर्फ़ बंद कमरें में होता है ये कहने वालों की मानसिक दशा तो हम आसानी से समझ सकते हैं। जिसके लिये प्यार का अर्थ सिर्फ़ संभोग और मैथुन है उसके लिये प्यार क्या होगा? पर एक मिनट… क्या मैथुन भी हमारे देश में सिर्फ़ कमरे तक सीमित है? कामसूत्र का परिभाषा महार्षि वात्स्यायन ने एक कमरे में बंद नहीं की थी। वो आज भी सजीव है और खजुराहो के मंदिरों के नाम से विश्वप्रसिद्ध है। बंद कमरों तक सीमित इनका प्यार आगे आने वाले इनके अनगिनित बच्चों के रूप में ख़ूब दिखने वाला है। साथ ही इनका इनकी जीवनसंगिनी पर ग़ुस्सा और रौब पूरे जगत के सामने ज़रूर दिखेगा।
तर्क संख्या 3 का जवाब
कौन जिम्मेदार होगा? वाह रे श्रीमान जिम्मेदार! यही वो जिम्मेदार व्यक्ति हैं जो बलात्कार होने पर लड़की पर दोष मढ़ते हैं, भले इनसे कोई टिप्पणी करने को कहे या नहीं। लड़कियों के पहनावे पर त्वरित टिप्पणी, चाल-चलन पर इनके विचार, औरत की स्वतंत्रता के नुकसान गिनाने में ये आपको हमेशा आगे दिखेंगे। लड़की को यही घर के अंदर कैद रखते हैं फ़िर अगर कोई अकेली चलती लड़की के साथ कोई अनहोनी होती है तो दोष भी उसे ही देते हैं। इनकी नज़र में बलात्कारी सबसे सभ्य, शालीन और निहायती निर्दोष व्यक्ति होता है।
तर्क संख्या 4 का जवाब
और क्या हैं अपनी भारतीय संस्कृति? शायद भारतीय संस्कृति में सिर्फ़ बलात्कार करना रह गया है। लड़की की इच्छा न होते हुए भी उसकी शादी किसी अंजान आदमी से कराने वाले यही संस्कृति के कथित रक्षक हैं। ये भूल जाते हैं कि लड़की की शादी हो जाने पर ससुराल में उसकी क़ीमत एक नौकरानी की और उस अंजान आदमी के बिस्तर पर एक वेश्या से ज्यादा की नहीं होगी। ऐसे में अगर लड़की अपने प्रेमी से अलग होने को तैयार न हो और फ़िर भी उसका पति (जो कभी जीवनसाथी बन ही नहीं सकता) उसके साथ जबरदस्ती संभोग करे तो वो भी बलात्कार ही है।
तर्क संख्या 5 का जवाब
जो आदमी इतनी गिरी सोच का हो जो प्रेम का अर्थ सिर्फ़ हवस माने उसकी बात सुनना भी वक़्त की बरबादी है।
दोस्तों, होली वाले दिन वैलेंटाईन डे से ज्यादा बलात्कार होता है, इससे ज्यादा पैसा दीवाली वाले दिन पर बहता है, इससे ज्यादा बरबादी शादियों में होती है। पर मात्रा किसी भी तरह से तर्क नहीं हो सकता।
वैलेंटाईन डे एक ऐसा दिन है जिस दिन दफ़्तर में काम करने के बाद भी दादा जी दादी को गुलाब का फूूल भेंट में देना नहीं भूलते, बाप अपनी बेटी को एक छोटा सा तोहफ़ा देकर भावुक हो उठता है, माँ को छोटा सा ग्रीटिंग कार्ड देकर भी बेटा ख़ुशी में झूम जाता है। यक़ीनन प्यार होने पर संभोग होता है पर संभोग प्यार का पर्यायवाची नहीं। संभोग प्यार करने का एक तरीक़ा है, पूरा प्यार नहीं। फ़िर वैलेंटाईन डे प्यार करने के लिये थोड़ी ही बना है। उसके लिये तो साल के 364 दिन पड़े हैं, वैलेंटाईन डे तो प्यार जताने का दिन है।