मैं, औरत, तुझ मर्द से पीछे क्यों हूँ, जानना चाहता है तो सुन:-
- पहला दिन, तूने मुझे गर्भ में मारना चाहा, मेरी माँ तेरे खाने में ज़हर डालकर तेरा अंत कर सकती थी और मैं असहाय थी, पर, वो चुप रही…
- दूसरा दिन, मेरे पैदा होते ही तूने मुझे मारने की कोशिश की क्योंकि तुझे लड़का चाहिये था, मेरी माँ तब भी तेरा अंत कर सकती थी और मैं असहाय थी, मैं चुप रही…
- तीसरा दिन, तूने मुझे पढ़ने जाने से रोका पर मैं डरी हुई थी, जिस आग पर मेरी माँ तेरा खाना बनाती थी उसी आग में तुझे झोंक सकती थी और मैं असहाय थी, मैं चुप रही…
- चौथा दिन, तेरे लड़के ने मुझ पर हाथ उठाया| पढ़ने की जगह मुझे चूल्हे चौके में लगाया, मेरी माँ सब्जी काटने की चाकू से तेरा गला भी काट सकती थी और मैं असहाय थी, मैं चुप रही…
- पाँचवा, तुने मुझे कालेज नहीं जाने दिया क्योंकि तू मेरे शरीर को तेरे कालप्निक चुने हुये दामाद की हवस की भूख के लिये बचाना चाहता था, मैं चाहती तो तेरी ओछी सोच पे चीख़ सकती थी, पर, मैं चुप रही…
- छटवाँ दिन, जब तेरा लड़का धर्म के नाम पर झगड़े करता था, जुआ खेलता था, नशे में घुत रहता था तो मैं उस की देखभाल में लगा दी जाती थी, मैं उसी वक़्त तेरे लड़के को ड़डे से पीट कर सीधा कर सकती थी, पर, मैं चुप रही..
- सातवाँ दिन, तूने मुझे मेरे पैरों पर खड़ा ना होने दिया तो मैं मन मार कर बैठी रही, तूने कहा कि नौकरी करने पर बिरादरी में शादी नहीं होती, मैं तेरी ओछी सोच का ज़वाब दे सकती थी, मैं चुप रही…
- आठवाँ दिन, तेरे नामुराद लड़के ने रक्षा का वचन देकर मुझ पर हाथ उठाया क्योंकि मेरा उससे पूछे बिना किसी लड़के से प्यार करना उसे तौहीन लगी, मैं उसी वक़्त पलट के उसे ड़डे से मार सकती थी, पर मैं चुप रही…
- नौवाँ दिन, तूने मेरी ज़बरन शादी कराई, मैं तेरे चुने हुए आदमी को साफ़ मना कर सकती थी, पर, मैं चुप रही…
- दसवाँ दिन, तेरे खाना बनाने के लिये और बच्चे पैदा करने के लिये मैं ने अपने सपने कुचल दिये, मैं रात के अंधेरे में तेरा गला काट सकती थी, पर, मैं चुप रही…
अब तू मेरे गर्भ की लड़की मारने जा रहा है, तो तू सुन। तेरे रूप कई थे पर हर रूप में तू हरामी और मैं पीड़ित बनी रही| मैं चाहती तो तेरा रात के अंधेरे में, तेरे लिये खाना बनाते हुए, तेरे लिये सब्जी काटते हुए और किसी भी वक़्त साधारण सी दिखने वाली चीज़ों को हथियार बना के तेरा अंत कर सकती थी| अपनी हरकतें सुधार वर्ना कहीं मैं अपनी सारी शर्म-हया और प्यार को किनारे रख तेरा काल न बन जाऊँ|